SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनहितेषी १० - जैन सिद्धान्त भवन, आरा । सहयोगी 'जैनप्रभात' के सम्पादकमहोदयने बाबू देवेन्द्र -- प्रसादजी से मुलाकात करके भवनके सम्बन्धमें एक नोट प्रकाशित किया है। उसमें कहा गया है कि भवनके विषयमें जैनमित्र जैनहितैषी आदिने जो आक्षेप किये हैं वे निर्मूल हैं। भवन एक बहुत बड़ी सूची बनाने में व्यस्त हो रहा है जो समयसाध्य व्ययसाध्य और परिश्रमसाध्य है। लोगोंको ग्रन्थ सहजमें नहीं मिल सकते हैं, इसका कारण यह है कि बहुत से ग्रन्थ ऐसे जीर्ण हैं जिन्हें हम बाहर भेजनेसे लाचार हैं । पत्रसम्पादकों को चाहिए कि भवनको स्वयं जाकर देखें; इसके बिना कुछ टीका टिप्पणी न करें और समाजको चाहिए कि उसे सहायता प्रदान करें । इत्यादि । अच्छा होता यदि बाबू सूरजमलजी उक्त नोटके बदले बाबू देवेन्द्रप्रसादजीसे - यह प्रकाशित करवाते कि, “ भवनकी पाँच वर्षकी रिपोर्ट अमुक तिथि तक प्रकाशित हो जायगी और सर्व साधारण के लाभ के लिए ग्रन्थोंकी एक संक्षेपसूची बहुत जल्द प्रकाशित की जायगी, भवनमें समयपर पत्रोत्तर देनेका यथेष्ट प्रबन्ध कर दिया गया है और लेखक रख लिये गये हैं, जिसे चाहिए वह चाहे जिस ग्रन्थकी नकल करवाके मँगवा ले । " बिना इसके भवनकी चाहे जितनी प्रशंसा की जाय, उसके सूचीपत्रके कार्यको चाहे जितना महान् कार्य बतलाया जाय और पत्रसम्पादकों को इस लिए कि वे भवनके कार्यकर्ताओंको उत्साहित करते रहें चाहे जितने उपदेश दिये जावें, आक्षेप निर्मूल नहीं हो सकते। किसी भी सार्वजनिक संस्थाके ६६२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy