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________________ विविध-प्रसड़। हम आशा करते हैं कि हमारे सहयोगी इस विषयकी चर्चाको ज़ारी रक्खेंगें और दोनों सम्प्रदायोंके अगुओंके कानोंतक इस आवश्यक सन्देशको अवश्य पहुँचा देंगे। २ 'भट्टारक ' पदकी दुर्दशा। किसी समय — भट्टारक ' पद बहुत ही पूज्य और प्रतिष्ठित समझा जाता था; परन्तु समयके फेरसे आज वही पद बहुत ही निन्द्य और अपमानास्पद गिना जाने लगा है। आज कोई भी अच्छा विद्वान् और विचारशील पुरुष समझाने बुझाने पर भी किसी भट्टारककी गद्दी पर बैठनेके लिए तैयार नहीं होता है । इससे एक नीतिज्ञका यह वचन बहुत ही सच जान पड़ता है कि " कोई पद मनुष्यको ऊँचा नही बना सकता, मनुष्य ही पदको ऊँचा बनाता है। मनुष्योंकी करामातसे ही आज भट्टारक पद सिंहासनसे नीचे लुढ़क कर पैरोंसे ठुकराने योग्य हो गया है। कई सौ वर्षों से इस पद पर प्रायः ऐसे ही लोग बिठाये गये जो इसके सर्वथा अयोग्य थे और अब तो प्रायः ऐसे ही लोग इस पदके एकाधिकारी हो गये हैं जिनमें मनुष्यता का पता लूंढने पर भी कठिनाईसे मिलता है। ऐसी दशामें यदि इस पूज्यपदकी दुर्दशा हो गई तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? ३ भट्टारकोंका टिमटिमाता हुआ दिया। . दिगम्बर जैनसमाजका एक बहुत बड़ा भाग बहुत दिनोंसे इन महात्माओंके शासनके जएँको अपने कन्धोंसे उतार कर फेंक चुका है जो कि आज तेरहपन्थके नामसे प्रसिद्ध है और इसके कारण भट्टारकोंका शासनप्रदीप निर्वाण होनेके बहुत ही समीप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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