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________________ जैनोंकी राजभक्ति और देशसेवा । ६४३ हुआ पुष्कुल द्रव्य राणाको दे दिया । कहा जाता है कि वह इतना था कि उससे पच्चीस हजार मनुष्य बारह वर्षतक आनन्दपूर्वक निर्वाह कर सकते थे ! स्वामिभक्त मंत्रीने राणासे हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि महाराज, मेरे पास जो धन है वह सब आपका ही आप स्वदेशको पधारिए और शत्रुसे पुनः युद्ध कीजिए । परिणाम यह हुआ कि थोड़ीसी सेनाके होनेपर भी राणाने चित्तौर, अजमेर और मंडलगढ़ के अतिरिक्त शेष सम्पूर्ण मेवाड़ वापिस ले लिया । यद्यपि इस घटनाको ३०० बर्ष से अधिक हो गये तथापि भामाशाहके नामसे जिसने आपत्तिके समय देशके गौरवकी रक्षा की मेवाड़का बच्चा बच्चा परिचित है । निस्सन्देह इससे बढकर देशहित और राज्यभक्तिका दूसरा उदाहरण नहीं मिल सकता । ३ - बीकानेरके अमरचन्द्र सुराना । अमरचन्द्र बीकानेरके प्रतिष्ठित ओसवाल जातिके एक जैन थे । महाराज सूरतसिंहके समयमें जिनका राज्यकाल सन् १७८७ से १८२८ तक रहा है इन्होंने बहुत प्रसिद्धि पाई । सन् १८०५ ईस्वी में अमरचन्दजी भटियोंके खान जब्टा खांसे युद्ध करनेके लिए भेजे गये । इन्होंने खान पर आक्रमण किया और उसकी राजधानी भटनेरको घेर लिया । पाँच मासतक क़िलेकी रक्षा करनेके बाद जब्टा खाँने किलेको छोड़ दिया और उसको अपने साथियोंके साथ रैना जानेकी आज्ञा मिल गई। इस वीरताके . कार्यके उपलक्ष्यमें राजाने अमरचन्द्रजीको दीवान पद पर नियत कर दिया । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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