SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनहितैषी भिन्न जातियोंमें प्रेम और एकताकी वृद्धि हुई-मानसिंह जैसे. वीरोंने मुगलसाम्राज्यकी रक्षाके लिए अपना जीवन लगा दिया, तब हमारी एक धर्मकी माननेवाली समीपवर्तिनी जातियोंमें इससे प्रेम और सहानुभूति क्यों न बढ़ेगी ? - ये बहुत ही मोटी मोटी बातें हैं जो हमें बतलाती हैं कि तमाम जैनजातियोंमें बेटी व्यवहार होने लगनेसे बहुत लाभ होगा और हम अनेक हानियोंसे बच जावेंगे । विचार करनेसे इनके सिवाय और भी अनेक बातें मालूम हो सकती हैं। हम आशा करते हैं कि हमारा यह लेख जगह जगह पंचायतियोंमें पढ़ा जायगा और विचारशील सज्जनोंका ध्यान इस विषयके हानिलाभोंकी ओर आकर्षित होगा। यहाँ हम यह भी कह देना चाहते हैं कि अभी यह विषय केवल चर्चाका है-अभी यह आशा नहीं कि लोग इस तरहका विवाहसम्बन्ध करनेके लिए तैयार हो जायेंगे । पहले अच्छी तरह चर्चा हो ले, लोग इसविषयको अच्छी तरह समझ लें, वादविवाद तर्क वितर्क कर लें, तब हम इसे कार्यमें परिणत देखनेकी आशा करेंगे। पर हमें यह विश्वास अवश्य है कि एक न एक दिन सारा जैनसमाज पारस्परिक विवाहसूत्रमें आबद्ध हुए बिना न रहेगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy