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________________ जैनजातियोंमें पारस्परिक विवाह । लोग यदि जैनसमाजकी तमाम जातियोंमें विवाहसम्बन्ध करने लगेंगे, तो यह दिन पर दिन बढ़नेवाला निकट सम्बन्धका हानिकारक प्रचार अवश्य कम हो जायगा। ८ एकताकी हानि-यह एक बहुत मोटी बात है कि विवाहसम्बन्धसे पारस्पारिक स्नेहकी और सहानुभूतिकी वृद्धि होती है। जिस जातिके लोगोंके साथ हमारा सम्बन्ध होगा यह संभव नहीं कि उनके साथ हमारी एकता घनिष्ठ न हो। जैनसमाजकी सम्पूर्ण जातियोंके साथ अभी हमारा सिर्फ धर्मका सम्बन्ध है, यदि रक्तका सम्बन्ध भी हो जाय, तो प्रेम और सहानुभूति बहुत कुछ बढ़ जाय। हम एकताके एक लम्बे चौड़े सूतमें बंध जाएँ और एक दूसरेके सुख दुःखोंका भलाई बुराइयोंका बहुत कुछ अनुभव करने लगे। एक दूसरेकी सहायतासे हमें उन्नति करनेके अवसर भी बहुत मिलने लगे। हम एक विशाल जातिके अंग बन जायँ । अभी तो हम अपनी अपनी ढपली और अपने अपने रागमें ही मस्त हैं। अपनी जातिसे भिन्न जातिकी उन्नति अवनतिका हमें बहुत ही कम खयाल है। ___ जो लोग विवाहसम्बन्धसे एकता और पारस्परिक सहानुभूतिकी वृद्धि नहीं मानते हैं उन्हें बादशाह अकबरकी उस कूटनीति पर ध्यान देना चाहिए जिससे उसने राजपूत जैसी उद्दण्ड उद्धत और अजेय जातिको भी विवाह सूत्रमें बाँधकर अपने वशमें कर लिया था और अपने राज्यकी नीवको बहुत ही दृढ बना दिया था। विवाइसम्बन्धके कारण जब राजपूत और मुसलमान जैसी अतिशय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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