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________________ जैन जातियोंमे पारस्परिक विवाह । ६२९ क्षत्रिय वैश्य और शूद्रकी; क्षत्रिय, क्षत्रिय वैश्य और शूद्रकी; और वैश्य वैश्य और शूद्र वर्णकी कन्याओंको ले सकता है । आदिपुराणमें भी इस अनुलोमविवाहका उल्लेख है। इससे हम विचार कर सकते हैं कि जब हमारे धर्मशास्त्र वैश्योंको शूद्रतककी कन्या लेनमें पाप नहीं बतलाते हैं तब खण्डेलवालको अग्रवालकी और परवारको पोरबाड़की कन्या लेनमें कैसे पाप बतला सकते हैं ? । ___ हमारे कथाग्रन्थों में इस तरहके विवाहसम्बन्धोंका उल्लेख भी मिलता है। चक्रवर्ती म्लेच्छोंकी कन्यायें लाते थे। यह अभी २२०० वर्षकी ही बात है कि चन्द्रगुप्त मौर्यने सेल्यूकसकी बेटीके साथ विवाह किया था। जरत्कुमारकी माता भिल्लनी थी । राजा उपश्रेणिकने एक भीलकी कन्याके साथ शादी की थी। उनके पुत्र श्रेणिक नन्दिश्री नामकी रानी एक वैश्यसेठकी कन्या थी । पद्मपुराण और हरिवंशपुराणमें भी ऐसी कई कथायें हैं जिनसे मालूम होता है कि पहले असवर्णविवाह खूब होते थे और वे किसी प्रकार निन्द्य नहीं समझे जाते थे। गरज यह कि धर्मशास्त्रोंकी आज्ञानुसार अनुलोमवर्णविवाहमें कोई दोष नहीं है और जब असवर्ण विवाहमें दोष नहीं है तब एक वर्णकी ही बनी हुई अनेक जातियोंके पारस्परिक विवाहसम्बन्धमें तो दोषकी कल्पना भी नहीं हो सकती। ___ धार्मिक बुद्धिसे विचार करने में भी इस प्रकारके सम्बन्धमें कोई दोष नहीं जान पडता । जिनके साथ हमारा भोजनव्यवहार होता है, जिनके आचार-व्यवहार-विचारादि हमी जैसे हैं और जो एक ही धर्म और देवकी उपासना करते हैं, उनमें बेटी-व्यवहार होने लग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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