SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनसिद्धान्तभास्कर। ६०१ ही पुस्तकमें छपवा दिया होगा । बड़े अफसोसकी बात है कि जो जो सम्पादक अपने पत्रके एक एक अंकको एक एक वर्षमें तैयार करते हैं और इसका कारण साधनसामग्री जोड़नेका अटूट परिश्रम बतलाते हैं तथा जो प्रत्येक अंकके लिए हज़ार हजार रुपया खर्च कर डालते हैं उनसे उक्त मन्दिरोंकी ताजा फोटो मँगवाकर न लगवाई गई ! दिगम्बरमतपर एक विदेशी विद्वान्का विचार । यह एक पादरी साहबके अंगरेजी लेखका अनुवाद है; पर यह नहीं बतलाया गया कि मूल लेख किस पुस्तकपरसे लिया गया और वह किस समयका लिखा हुआ है। लेख अच्छा है, पर पुराना मालूम होता है और इस कारण उसमें कई भ्रमपूर्ण बातें मौजूद हैं जिन्हें इस समयके इतिहासज्ञ नहीं मानते । जैसे, इसमें एक जगह लिखा है कि गौतम ( इन्द्रभूति ) महावीरके शिष्य थे और वही पीछेसे बुद्ध नामसे प्रसिद्ध हुए । पर यह भ्रम है। महावीरके शिष्य गौतम गणधरसे गौतम बुद्ध पृथक् व्यक्ति हैं। पहले ब्राह्मण थे और दूसरे क्षत्रिय राजपुत्र । ग्रीक लोगोंने जिन जिम्नासोफिस्ट साधुओंका उल्लेख किया है उनको दिगम्बरजैनसम्पदायके साधु सिद्ध करना बहुत कठिन है। उनकी चर्या दिगम्बर जैनसाधुओंसे बहुत भिन्न बतलाई गई है। केवल नग्न होनेसे या मांसभोजी न होनेसे उन्हें दिगम्बर कहना जबरदस्ती है। सिकन्दर बादशाहने जिस जिम्नासोफिस्ट साधुके पास अपना दूत मेजा था, वह ईश्वरका कर्तृत्व माननेवाला, अपक्व फलमूल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy