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________________ ६०० जेनहितैषी बनवाया । सम्पादक महाशय कहते हैं कि “ ये गंगकुलोत्पन्न परम जैनधर्माभिमानी महाराज गंगराज चामुण्डरायके दो सौ वर्षे पीछे हुए हैं।” परन्तु गंगराज गंगकुलके किस राजाका नाम था और उसने कबसे कब तक राज्य किया है यह बतलानेकी आवश्यकता नहीं समझते । हमारी समझमें चामुण्डराय जिनके मंत्री थे वे महाराज राचमल्ल ही उक्त चैत्यालयके बनवानेवाले होंगे । वे गंगवंशके ही थे और जैनधर्मके अनुयायी थे। गंगराज नाम उन्हींके लिए आया है। जब दोनों लेख एक ही समयके लिखे हुए हैं तब गंगराजको चामुण्डरायके २०० वर्ष बादका बतलाना असंगत है। हाँ, राचमल्लके एक भाईका नाम रक्कस गंगराज था। उसने ई० सन् ९९७ से १००८ तक राज्य किया है। प्रसिद्ध जैन कवि नागवर्मा (चामुण्डरायके गुरु अजितसेनका शिष्य) इसका आश्रित कवि था। संभव है कि गंगराज उसीका संक्षिप्त नाम हो । गरज यह कि राचमल्ल या उनका भाई, इन दोमेंसे किसी एकको चैत्यालयका - बनवानेवाला समझना चाहिए। इस लेखमें भी सम्पादकने तीन चार प्रतिज्ञायें की हैं जो अभी• तक पूरी नहीं हुई हैं और शायद आगे भी न होंगी । इस तरह की प्रतिज्ञायें करना उनकी लेखशैलीमें दाखिल है! ____ इस लेखमें चन्द्रगुप्तबस्ती आदिके जो ४-५ चित्र दिये हैं, वे राइस साहबकी पुस्तकसे' ज्योंके त्यों उतार लिये गये हैं। उस समय फोटो आदि लेनेका अधिक सुभीता न होगा, इसलिये : राइससाहबने मन्दिरोंके रेखाचित्र हाथसे खींच लिये होंगे और उन्हें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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