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________________ जैनासद्धान्तभास्कर। बेचारे अशनिवेगकी तो खूब ही दुर्दशा कर डाली-क्रोधका विशेषण बनाकर उसके अस्तित्वको ही मिटा डाला ! कथासूत्रका साराका सारा अनुवाद इसी तरहका किया गया है। बेचारे द्विवेदीजी करें भी क्या ? जैनपद्मपुराणकी कथाओंकी उन्हें कभी हवा भी लगी हो तब न ? यह कार्य तो सेठ पदमराजजीका था वे तो अपनेको जैनधर्मका भी विद्वान् समझते. हैं; यदि एक नज़र इधर डाल लेते, तो यह अनर्थ क्यों होता ? ग्रन्थके अन्तिमभागके भी कुछ श्लोकोंके अनुवादका नमूना लीजिए: उपायाः परमार्थस्य कथितास्तत्त्वतो बुधाः सेव्यतां शक्तितो येन निष्कामथ भवार्णवात् ॥ ३७॥ इसका अर्थ यह है कि " हे सज्जनो, परम अर्थ अर्थात् मोसके जो वास्तविक उपाय ( दर्शन ज्ञान चारित्र ) कहे गये हैं उन्हें अपनी शक्तिके अनुसार सेवन करो जिससे संसार समुद्रसे पार हो जाओ।" परन्तु अनुवादकजी कहते हैं-" परमार्थके ठीक ठीक उपाय विद्वान् ही ( आप या सेठजी ? ) कहे गये हैं, इस लिए यथाशक्ति इनकी सेवा करके ( अवश्य ही ) संसार समुद्रसे आप लोग पार होंगे।" लीजिए, भास्करका यह नया सिद्धान्त सुन लीजिए और इसको शघि अमलमें लाइए। .. यह समझमें न आया कि पद्मपुराणके मंगलाचरण कथासूत्र आदिमें ये १२ पृष्ठ क्यों काले किये गये ? इनमें ग्रन्थकर्ताका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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