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५७४ 8763 जैमाहितैषी
अनुपयोगी क्रियाओं, आज्ञाओं और भावनाओंमें अपनी शक्ति और समयका व्यय करना मुझसे- बीसवीं शताब्दिके गंभीर जीवनकलहके बीच रहनेवाले तुच्छ मनुष्यसे—नहीं बन सकता । उपयोगिता ( utility ) ही इस जमानेका दृष्टिबिन्दु है। इस लिए, जिस पर्युषणपर्वको जैनसमाज हजारों वर्षों से पालता आ रहा है और पालता है, वह पालने योग्य है या नहीं, इस प्रश्नपर मैं उपयोगिता अथवा यूटिलिटीकी दृष्टिसे विचार करना चाहता हूँ। मैं इस सिद्धान्तको नहीं मानता कि इसे लाखों मनुष्य पाल रहे हैं, इस लिए मुझे भी पालना चाहिए, या यह प्राचीन समयसे चला आ रहा है और अपने बड़े बड़े पूर्वजोंने इसका पालन किया है, इस लिए पालनीय है। __इसी तरह केवल इस कारण भी मैं इसका अंगीकार नहीं कर सकता हूँ कि इसके पालनेके लिए अमुक अमुक महापुरुषोंकी आज्ञा है। क्योंकि क्रिश्चियन, मुसलमान आदि सारे धर्मों के अनुयायी भी तो अपनी प्रत्येक क्रियाको इसी तरह परमेश्वरकी आज्ञा और ईश्वरनिर्मित ग्रन्थसे विहित बतलाते हैं, परन्तु जैनधर्मानुयायी अपनी बुद्धिसे प्रश्न करके उनकी क्रियाओंको स्वीकार करनेसे इंकार कर देते हैं।
पर्युषण पर्वको स्वीकार करनेके पहले उसका अर्थ या स्वरूप समझ लेना चाहिए, और उसकी उपयोगिता भी जान लेनी चाहिए। मैंने इस विषयमें अपनी शक्तिके अनुसार जो कुछ अध्ययन और मनन किया है, उससे मुझे निश्चय हो गया है इस पर्वका पालन अवश्य
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