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________________ ( ४ ) श्रीमान् गुणभद्राचार्य रचित आत्मानुशासन | सरल हिन्दी भाषाटीका सहित । सुलभ संस्करण । इस ग्रन्थका परिचय देनेकी ज़रूरत नहीं । आत्मापर शासन करने के लिए उसको वशमें करनेके लिए यह ग्रन्थ अंकुशके तुल्य काम देता है । दश ग्यारह वर्ष पहले यह ग्रन्थ लाहौर में छपा था तबसे यह दुर्लभ हो रहा था । उस समय इसका मूल्य ४ ) था परन्तु अब लगभग दो रुपया में ही आप इसकी स्वाध्याय कर सकेंगे । भाषा आज कलकी बोल चालकी सबके समझने योग्य कर दी गई है। छपाई सुन्दर है । आश्विनमें तैयार होगा । जिनशतक -- आचार्य समन्तभद्रका बनाया हुआ यह अद्भुत ग्रन्थ अभीतक लुप्त था । इसमें १०० श्लोक हैं और वे सब चित्र काव्य हैं । अर्थात् इसका प्रत्येक श्लोक चित्रोंके भीतर लिखा जा सकता है । इसमें भगवान् के स्त्रोत्र हैं । हिन्दी भावार्थसहित छपाया गया है | मूल्य || धर्मरत्नोयोत--आरा निवासी बाबू जगमोहनदासका बनाया हुआ हिन्दी कविताका ग्रन्थ । बहुत बढ़िया कागज पर छपा है । मू० १) परीक्षामुख - - न्यायका प्रसिद्ध ग्रन्थ हिन्दी अनुवाद सहित छपा है । यह ग्रन्थ कलकत्ता यूनीवर्सिटीके कोर्समें है और जैन पाठशालाओं में पढ़ाया जाता है | मूल्य | J आप्तपरीक्षा -- आचार्य विद्यानन्दीका प्रसिद्ध न्याय ग्रन्थ हिन्दी अनुवाद सहित अभी हाल ही छपा है । मूल्य | J Jain Education International मिलनेका पता ---- जैन ग्रन्थ- रत्नाकर कार्यालय, हीराबाग, पो० गिरगांव - बम्बई. मुंबईवैभव प्रेस, सैंडर्स्टरोड गिरगाव-मुंबई. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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