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________________ विविध प्रसंग। ५६७ वे छूटकर आवें, त्योंही-जरा भी देर न करके–स्वागतके रूपमें ही उनपर अपने कुंढापंथी आदि सुन्दर सुन्दर शब्दोंकी पुष्पवृष्टि करना शुरू कर दें, इसके लिए आपको कोई न रोकेगा । पर यदि इतनी लम्बी प्रतीक्षा करनेका धैर्य आपमें न हो, ये शब्द बाहर आनेके लिए आपके मस्तकमें ऊधम ही मचा रहे हों, तो सेठीनी अकेले ही तो नहीं हैं। उनके हमखयाली और भी तो बहुतसे हैं। जिन्हें आप उन्हीं जैसे विचार रखनेवाले समझते हों-वर्णीनीका. वर्ण, मुख्तारकी मुख्तारी, लट्टेका लट्ठ, भानुमतीका कुनबा आदिका इशारा आप कर ही चुके हैं-इन्हीं से किसी एक पर-या सभीपर अपना जोश निकालना शुरू कर दीजिए। इससे आप भी शान्त हो जायँगे और इधर, इस आपसी फूटसे सेठीजीका भी कुछ अनिष्ट न होगा। आपकी धार्मिक और करुणादृष्टिका पृथक्करण करनेवाली सक्ष्म दृष्टि में चाहे यह बात न आवे, परन्तु आपके लेख इस समय बहुत ही बुरा असर डाल रहे हैं। सेठीजी पर धार्मिक नहीं, करुणादृष्टि करके ही इन्हें बन्द कर दीजिए। इन लेखोंमें हमारे विषयमें जो कुछ लिखा गया हैं उसका उत्तर देनेकी हम आवश्यकता नहीं देखते । जैनसमाजमें काम करते करते हमें सहनशीलताका यथेष्ट अभ्यास हो गया है। सेठीजीके लिए हम इससे भी अधिक सहमः करनेके लिए तैयार हैं। हमारी समझमें, उनके पंथ या धर्मका निर्णय इस तरहके वादविवादोंसे नहीं हो सकता। अभीतक जैनधर्म और जैनसमाजके लिए उन्होंने जो कुछ किया है और आगे इससे सैकड़ों गुणा जो कुछ वे करेंगे, उससे यह निर्णय होगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522807
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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