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________________ ५६६ जैनहितैषी सेठीजी पर उस समय कोई वार करनेकी आवश्यकता न समझी थी, तो थोड़े समयके लिए और भी उन्हें अपने जोशको दबाये रहना था । जिस समय वे एक बड़े भारी कष्टों पड़े हैं, उनकी लेखनी और वाक्शक्ति पराधीन है, उस समय उनको कुंढापंथी, मणिधरसर्पतुल्य, धर्महीन आदि कहकर उनकी जीभर निन्दा करना और सारे समाजको उनके विरुद्ध भड़काना अनुचित ही नहीं अतिशय निन्द्य कर्म है । मरेहुए पर या बेवशपर वार करना कोई बहादुरीका कार्य नहीं है। इस तरहके कर्म पर धर्मकी और सम्यग्दृष्टित्वकी चाहे जितनी भड़कदार कलई चढाई जाय, पवित्र दिगम्बर सम्प्रदायकी चाहे जितनी दुहाई दी जाय, पर इसका कालापन कभी दूर न होगा ! धर्मात्मा कहनेवालोंके लिए यह लांछनके सिवा और कुछ नहीं हो सकता। ३ हमारा नम्र निवेदन । सेठीजी कभी न कभी तो छूटेंगे ही । एक न एक दिन वे विपत्तिसे मुक्त होगें और फिर एक बार अपने प्यारे जैनधर्मकी और जैनसमाजकी सेवा करनेके लिए तत्पर होंगे। तब सत्यवादीके सम्पादक महाशयसे तथा उनकी मण्डलीके सज्जनोंसे हमारी प्रार्थना है कि इस समय तो आप सेठीजी पर और जैनसमाजपर कृपा करें । यह समय उनकी निन्दा करनेका नहीं है। अभी तो धार्मिकदृष्टि या करुणादृष्टि जो कुछ आपके पास हो वही उनपर करते रहें । इस बीचमें उनको मिथ्याती या जैनाभास सिद्ध करनेकी जो कुछ तैयारी आप कर सकते हैं कर रक्खें । इसके बाद ज्योंही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522807
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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