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________________ जैनहितैषी ४ व्याख्यानवाचस्पति पं० लक्ष्मीचन्द्रजीका कृपापत्र । ____ गत वैशाख मासमें जब पं० लक्ष्मीचन्द्रजी इन्दौरके उत्सवमें पधारे थे तब सहयोगी जैनमित्र और जैनतत्त्वप्रकाशकने उनके व्याख्यानोंके सम्बन्धमें कुछ आक्षेप किये थे। उस समय हितैषीके गत ५-६ अंकमें हमने भी एक नोट लिखा था। उस नोटका संक्षिप्त आशय यह था—जैसे देवता वैसे पुजारी। जैनसमाज जैसे मूर्खसमाजके लिए पं० लक्ष्मीचन्द्रजी जैसे व्याख्याताओंके व्याख्यान ही मनोरंजक हो सकते हैं; तत्त्वोंके व्याख्यान सुननेकी उसकी योग्यता नहीं है । इत्यादि।" उक्त नोटमें पण्डितजीकी प्रशंसाका एक शब्द भी न था, बल्कि एक तरहसे उनके व्याख्यानोंपर कटाक्ष था । परन्तु पाठक यह जानकर आश्चर्य करेंगे कि व्याख्यानवाचस्पति विद्यासागर आदि बड़ी बड़ी पदवियोंसे विभूषित पण्डितजीने उस नोटको अपनी प्रशंसा करनेवाला समझ लिया और इस खुशीमें हमारे पास एक सन्तोषपत्र लिख भेजनेकी कृपा की । पण्डितजीकी इस कृपाको हम सादर स्वीकार करते हैं और अपने पाठकोंकी जानकारीके लिए उक्त पत्रकी अक्षरशः नकल यहाँ प्रकाशित किये देते हैं । पण्डितजीकी योग्यताका और उनके हृद्त भावोंका इससे अच्छा चित्र शायद ही कहीं देखनेको मिले । हमें आशा है कि पाठक इससे जैनसमाजके पण्डितोंके मर्मको समझनेमें बहुत कुछ समर्थ हो सकेंगे । पत्रमें टीका टिप्पणी करनेकी बहुत कुछ गुंजाइश थी; परन्तु यह काम हमने अपने पाठकोंके लिए छोड़ देना ही उचित समझा है। पण्डितजी हमें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522807
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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