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________________ * जैनहितैषी इस आश्रमके संस्थापक जगत्प्रसिद्ध साहित्यसम्राट् स्वनामधन्य कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं; हितैषीके पाठकोंको जिनका विशेष परिचय करानेकी आवश्यकता नहीं। आप प्रकृतिके एकनिष्ठ सेवक हैं। प्रकृतिका अभ्यास करना, प्रकृतिसे शिक्षा लेना आप प्रत्येक व्यक्तिके लिए बहुत ही आवश्यक समझते हैं। भारतवर्ष में किस तरहकी शिक्षा लाभकारी होगी इस विषयमें आपने कई निबन्ध भी लिखे हैं जिनमेंसे कुछके अनुवाद हितैषीके पाठक पढ़ चुके हैं। उन्हीं शिक्षासम्बन्धी विचारोंको कार्यमें परिणत करनेके लिए आपने इस संस्थाको जन्म दिया है और इसका भार अपने सिरपर लिया है। अभी कुछ समय पहले आपको जो सवालाख रुपयेका बड़ा भारी पुरस्कार मिला था उसे आपने इसी संस्थाके लिए अर्पण कर दिया था। सुनते हैं अपनी बनाई हुई तमाम पुस्तकोंका कापीरॉइट भी आपने इस आश्रमको ही दे दिया है। ___ आश्रममें इस समय १९० विद्यार्थी हैं। इनमें २० विद्यार्थी महात्मा गाँधीकी दक्षिण आफ्रिकाकी संस्थाले हैं। प्रायः सभी विद्यार्थी पेड रक्खे जाते हैं। प्रवेश फीस २०) नियत है आर . १८) मासिक फीस देना पड़ती है। थोड़ा बहुत खर्च और भी होता है और इस तरह प्रत्येक विद्यार्थीके लिए २०) रु० मासिककी आवश्यकता है। यद्यपि यह खर्च अधिक जान पड़ता है परन्तु आश्रमके बहुव्ययसाध्य संचालनकी दृष्टिसे देखने पर यह कम ही मालूम होगा। साधारणतः दशवर्षसे अधिक उम्रके विद्यार्थी भरती नहीं किये जाते । सब विद्यार्थी एक दृष्टिसे देखे जाते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522807
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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