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________________ जैनहितैषी - ५३० विचार किया है? यदि न किया हो तो आज ही करो । विचारनेसे तुम्हें मालूम हो जायगा कि समग्र ग्रामके मनुष्य जिस कामको खराब समझते हैं उस कार्यको करना किसी भी मनुष्य के लिये कठिन क्यों होता है । यह बात सहज ही तुम्हारी समझमें आ जायगी । दूसरे मनुष्योंके विचार अपने सूक्ष्म शरीर से सदा टकराते, मनमें घुसते और कुछ न कुछ असर करके बाहर निकलते हैं । यही सबब है कि एक मनुष्य के लिए स्वतंत्र विचार करना कठिन होता है। इसी कारण हमारे लिए वैसे काम करना भी कठिन होता है कि जिन्हें दूसरे लोग खराब समझते हैं, परन्तु जिन्हें हम अच्छे समझते हैं । संसारमें जो मनुष्य सभ्य कहाते हैं वे भी इस विषय में बड़ी भूल करते हैं और दूसरोंके प्रति अत्यंत घातक वर्ताव करते हैं । वे दूसरोंमें जो दूषण देखते हैं उन्हें सदा ही विचारा करते हैं और समझते हैं कि वे मनुष्य अपनी भूल सुधार नहीं सकते अथवा भूलको दूर ही नहीं कर सकते । ऐसा करने से वे उनके दूषणों को बढ़ाते रहते हैं और उन्हें दूर करनेमें विघ्न डाला करते हैं । कई निर्दोष पुरुष ऐसे हैं कि जिनके माथे कलंक लगा हुआ है और जिन्हें दूसरोंके विचारोंको सुनकर बहुत दुःख सहना पड़ता है । कारण यह है कि उनके विषयमें दूसरे कुछ भी नहीं जानते । के सिर्फ सुनते हैं कि अमुक कारणसे अमुक स्त्री या पुरुष दोष के पात्र हैं और यह बात सच समझकर वे उस बेचारेको धिक्कारा करते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522807
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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