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________________ विचारशक्ति । ५३१ जिस प्रकार यह सत्य है उसी प्रकार इससे विरुद्ध बात भी सत्य है (?) इस वास्ते हमें उचित है कि प्रत्येक मनुष्यमें जो बात अच्छी हो उसे देखनेकी आदत डालें और जब अवकाश मिले उस गुणका विचार किया करें। इतना ही नहीं किन्तु हमें मनमें सदा इस तरहके चित्रकी कल्पना करते रहना चाहिए कि वह सद्गुण उस मनुष्यमें धीरे धीरे बढ़ता जा रहा है और उसके जीवन पर अच्छा असर डाल रहा ह । ऐसे कल्पित चित्रसे और इस प्रकार दूसरोंके शुभगुणोंका मनन करते रहनेसे हम अपने मित्रोंको शत्रुओंको ( वास्तव में तो अपना कोई शत्रु है ही नहीं ) तथा सर्वसाधारणको सहायता पहुँचा सकते हैं और जीवनके लिए हजारों मित्र और साथी बना सकते हैं । * इसी मार्गसे हम अपने भविष्यके अनुवादक:बुधमल पाटणी, इंदौर | करनी और कथनी सुन्दरी । कथनी करे सब कोई, करनी अति दुर्लभ होई । कथनी० । शुक रामको नाम बखानै, नहिं परमारथ तसु जानै; विधि भनि वेद सुनावै, पर अकल-कला नहिं पावै ॥ क ०॥१॥ छत्तीस प्रकार रसोई, मुख गिनतर्हि तृप्ति न होई; शिशु नाम नाहिं तसु लेवै, रस स्वादत सुख अति वेवै ॥ ० ॥२॥ बन्दी जन कडखा गावै, सुनि सूरा सीस कटावै; जब रुंड मुंड ता भासै, सब आगे चारण नासै ॥ क० ॥ ३ ॥ * जैनहितेंच्छु, मास जून १९१० ई०, अंक छटेसे अनुवादित । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522807
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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