SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विचारशक्ति। ५२९ जीता जला डालते थे। ऐसे विचार प्रगट करनेवालेको कड़ीसे कड़ी सजा हुए बिना न रहती थी; परन्तु आजकल सौभाग्यवश मनुष्योंके विचारका प्रवाह बदल गया है ।) इस विषयकी पुस्तकें भी प्रकाशित होने लग गई हैं। ऐसी सचित्र पुस्तकें भी निकली हैं कि जिनमें यह बात बतलाई गई है कि नाना विचार और मनोभावनाओंसे किस किस प्रकारके रंगबिरंगे आकर बनते हैं और मनुष्योंके सूक्ष्म शरीरोंमें किस किसप्रकारका फेरफार होता है। अपने विचारोंकी आकृतियाँ अपने सूक्ष्म शरीरमेंसे निकलकर दूर जाती हैं और दूसरे लोगों पर असर डालती हैं- उसी प्रकारसे दूसरे मनुष्योंके विचारोंकी आकृतियाँ भी हम पर असर डालती हैं । इस ज्ञानके द्वारा हम इस बातका भी विचार कर सकते हैं कि अपनी जातिवालोंको तथा दूसरोंको किस प्रकार सहायता पहुँचाई जाय । चाहे जैसा मनुष्य हो, उसमें कुछ न कुछ अच्छी बात होनी ही चाहिए। इसीसे यदि हम उस मनुष्यके प्रति प्रेम सहायता और कल्याणरूप विचार प्रगट करें तो कभी न कभी वे विचार उसके हृदयमें प्रवेश किये बिना न रहेंगे । ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं जो सदा ही क्रोधी लोभी या कंजूस रहता हो । तब कोई दिन ऐसा भी आवेगा कि अपना शुभप्रेमरूपी विचार उसके हृदयमें प्रवेश करेगा और उसके सद्गुण बीजको पुष्ट करेगा। अतः शुभ विचार प्रगट करनेवालेको भविष्यमें एक मित्र मिलेगा और पुण्य बंध होगा। एक छोटेसे ग्राम शहर या देशकी चहुओर जो विचारोंकी आकृतियोंके बादल छाये रहते हैं उनका भी क्या तुमने कभी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522807
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy