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________________ ५२६ जैनहितैषी मनुष्योंका हमारी ओर आकर्षण होता है तो, अच्छे विचारों से अच्छे मनुष्योंका झुकाव हमारी ओर अवश्य होना चाहिए । यह हमारे अधिकारकी बात है। जैसे विचारवाले मित्र और साथियोंकी चाहना हम करते हों वैसे ही विचारोंकी उत्पत्ति और पुष्टि हमारे अन्तःकरणमें होनी चाहिए। इस प्रयत्नसे शीघ्र या धीरे हमें वैसे मित्रों या साथियोंका समागम प्राप्त हो सकेगा। - जिन्हें यह बात सुननेका प्रथम ही मौका मिला है उन्हें अपूर्व आनंद होना चाहिए । कई मनुष्य अपने काममें दिनभर इतने लीन रहा करते हैं कि उन्हें मित्रोंसे मिलने या उत्तमोत्तम पुस्तकें बाँचनेको समय ही नहीं मिलता । दिनभरके कामसे उन्हें रात्रिसमय इतनी बेचैनी रहती है कि उस समय अभ्यास करने, मीटिंगमें, नाने या मित्रोंसे बातचीत करनेको भी उन्हें क्वचित् ही फुरसत मिलती हो। यदि दिनभरके लिए एक विचार पसंद करनेके वास्ते मनुष्य प्रातःकाल सिर्फ पाँच मिनिट व्यतीत करे और उस समय सचाई, दया, शांति, परोपकार, धैर्य, साहस इत्यादिमें से किसी एक सद्गुणका दृढ चित्तसे विचार करे और दिनके समय जब कभी उसे फुरसत मिले वह उसी सद्गुणका विशेषतासे विचार किया करे तो शीघ्र या बिलंबसे वे मनुष्य उसके पास आके उससे मित्रता करेंगे कि जिनके विचार उससे मिलते हुए हैं। इसके लिए उसे दूसरे जन्मतक राह देखते रहना न पड़ेगा । इसी भवमें एक या दो महिनेमें या अधिक हुआ तो एक या दो वर्षमें वैसे विचारवाले मनुष्य Jain Education International For Personal & Private Use Only __www.jainelibrary.org
SR No.522807
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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