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________________ विचारशक्ति। ५२७ अवश्य तुम्हारे पास आवेंगे कि जिनके विचार तुम्हारे सदृश हैं, शर्त यह है कि तबतक तुम अपने विचार दृढ बनाये रहो। विचारशक्तिके प्रभावसे जो काम हो सकता है उसका यह एक छोटासा हिस्सा है । याद रक्खो कि विचार एक सच्ची चीज है। प्रथम प्रत्येक विचार मनुष्यके चित्तमें उत्पन्न होता है पश्चात् उसकी वृद्धि होती जाती है। जगत्की महाशक्तिके तुल्य हमारे विचारमें भी उत्पादक शक्ति है। यद्यपि इस समय वह शक्ति कमजोर मालूम होती है परन्तु वैसी शक्ति है अवश्य । हम शक्तिके अनुसार शुभाशुभ विचारकी आकृतियाँ उत्पन्न करते हैं और उसी रूपमें दूसरोंको सहायता पहुँचाते या कष्ट देते हैं। ___ रोगी मनुष्य जो विस्तर परसे या कुरसी परसे उठनेमें अशक्त होते हैं प्रायः चिड़चिड़ाया करते हैं और इस जगत्में उनके जीवनका कुछ भी उपयोग नहीं-इस विचारसे दुखी होते रहते हैं। परन्तु यदि उनमें शुभ और दृढ विचार करनेकी शक्ति हो तो वे भी अपने तन्दुरुस्त मित्रोंके सदृश दूसरोंको मदद पहुँचा सकते हैं। इस स्थल पर इस नियमका प्रगट करना आवश्यक है कि यदि कोई एक विचार प्रतिदिन किसी खास समय पर किसी खास स्थानमें दीर्घकाल पर्यंत दृढताके साथ किया जाय तो उसका हम पर इधर उधर दौड़कर सख्त परिश्रम करनेकी अपेक्षा अधिक स्थायी असर पड़ेगा। कई मनुष्योंका कथन है कि जगत्के लेखक और विचारकर्तागण कोई भी काम नहीं करते; कारण कि वे शरीरसे काम नहीं लेते और कोई बड़ा व्यापार नहीं चलाते । परन्तु यह कथन ठीक नहीं । कारण, विचार ही तो कार्यका करनेवाला है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522807
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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