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________________ ४८२ जैनहितैषी - अनेकभेदसंधानाः खनन्तो हृदये मुहुः । बाणा धनंजयोन्मुक्ताः कर्णस्येवाप्रियाः कथम् ॥ (8) वाग्भट कवि । पं० दौर्बलि शास्त्रीके पुस्तकालय में एक नेमिनिर्वाण काव्यकी प्रति है । उसके अन्तमें यह श्लोक है जो अन्य प्रतियोंमें नहीं मिलता- अहिच्छत्रपुरोत्पन्नः ... भटकुलशालिनश्छादस्य सुतश्चक्रे प्रबन्धं वाग्भटः कविः ॥ इससे मालूम होता है कि वाग्भट कवि अहिच्छत्रपुर में उत्पन्न हुए थे और उनके पिताका नाम 'छाद' था। काव्यानुशासन के कर्त्ता वाग्भट नेमिकुमारके पुत्र हैं । उन्होंने अपने ग्रन्थमें एकं वाग्भटका उल्लेख किया है। वे वाग्भटालंकारके कर्त्ता हैं और उनके पिताका नाम 'सोम' है । वाग्भटालंकारमें आदियमकके उदाहरणमें 'नेमिनिर्वाण' के ६ ठे सर्गका ४६ वाँ श्लोक ' कान्तारभूमौ' आदि उद्धृत किया है । इससे काव्यमालाके सम्पादकने लिखा था कि शायद नेमिनिर्वाण और वाग्भटालंकारके कर्त्ता एक ही हैं; परन्तु अब उक्त लोकसे निश्चय हो गया कि नेमिनिर्वाणके कर्त्ता दोनोंसे भिन्न ती - मरे ही हैं । वाग्भटालंकारके कर्त्ता श्वेताम्बर हैं; परन्तु ये दिगम्बर मालूम होते हैं। यह स्मरण रखना चाहिए कि अष्टांगहृदय वैद्यकके कर्त्ता वैद्य वाग्भट इन तीनों से भिन्न सिंहगुप्तके पुत्र हैं । 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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