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इतिहास-प्रसङ्ग।
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अपने पार्श्वनाथकाव्यके प्रारंभमें समन्तभद्रका स्मरण करते समय उन्हें रत्नकरण्डका रचयिता बतलाया है। पार्श्वनाथ काव्य विक्रमसंवत् १०८३ में रचागया है । अर्थात् आजके समान उस समय भी रत्नकरण्डके कर्ता समन्तभद्र समझे जाते थे । वे श्लोक ये हैं:
स्वामिनश्चरितं तस्य कस्य नो विस्मयावहं। देवागमेन सर्वज्ञो येनाद्यापि प्रदर्यते ॥१७॥ अचिन्त्यमहिमा देवः सोऽभिवन्द्यो हितैषिणा। शब्दाश्च येन सिद्धयन्ति साधुत्वं प्रतिलंभिताः ॥ १८ ॥ त्यागी स एव योगीन्द्रो येनाक्षय्यसुखावहः ।
अथिने भव्यसार्थाय दिष्टो रत्नकरण्डकः ॥ १९ ॥ दूसरे श्लोकसे यह भी स्पष्ट होता है कि समन्तभद्रस्वामी वैयाकरण भी थे और उनका बनाया हुआ कोई ग्रन्थ था। पूज्यपादस्वामीने भी जैनेन्द्र व्याकरणमें उनके व्याकरणका उल्लेख किया है।
धनंजय महाकवि। द्विसन्धानकाव्यके कर्ता प्रसिद्ध कवि धनंजयका समय निश्चित नहीं हुआ; पर ऐसा मालूम होता है कि वे विक्रमकी दशवीं शताब्दिके पूर्वमें हो चुके हैं। क्योंकि एक तो बालभारत बालरामायणादि नाटकोंके कर्ता राजशेखरने जो दशवीं शताब्दिके पूर्वार्धमें हो चुके हैं--उनकी प्रशंसा की है:
द्विसन्धाने निपुणतां सतां चके धनंजयः। - यया जातं फलं तस्य सतां चक्रे धनंजयः॥ इनके सिवाय वादिराजसूरिने वि० सं० १०८३ में अपने साश्वकाव्यमें कहा है:- .
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