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________________ ४८० जैनहितैषी LONaam 1698 BE HSSS इतिहास-प्रसङ्ग। [ इस स्तंभमें हम वे सब फुटकर इतिहाससम्बन्धी बातें प्रकाशित किय करेंगे जो हमें समय समय पर मालूम होती रहती हैं। हमारी समझमें इतिहास प्रेमियोंको इन बातोंसे बहुत लाभ होगा। ] (१) समन्तभद्र राजपुत्र थे। श्र वणबेलगुलमें पं० दौर्बलि जिनदास शास्त्रीके AL यहाँ एक अच्छा पुस्तकालय है। उससे आप्तAMO मीमांसाकी एक प्रति है। उसके अन्तमें लिखा POSTAN है:-"इति फणिमण्डलालंकारस्योरगपुराधिपसूनोः श्रीस्वामिसमन्तभद्रमुनेः कृतौ आप्तमीमांसायाम् ।” इससे मालूम होता है कि वे उरगपुरके राजाके पुत्र थे । यह शायद वही उरगपुर है जिसका कालिदासने रघुवंशमें उल्लेख किया है और जो चोलराज्यके अन्तर्गत है। फणिमण्डल भी शायद उसे ही कहते रहे हों । समन्तभद्र स्वामीके जिनशतक नामक काव्यमें एक चित्रबद्ध पद्य है जिससे मालूम होता है कि उनका गृहस्थाश्रमका नाम शान्तिवर्म था । यह नाम भी राजघरानोंके ऐसा है। . (२) ___ रत्नकरण्डकी प्राचीनता । बहुत लोगोंका खयाल है कि रत्नकरण्डश्रावकाचार सुप्रसिद्ध समस्तभद्रस्वामीका बनाया हुआ नहीं है । कोई और समन्तभद्र नामके आचार्यका रचा हुआ होगा । परन्तु श्रीवादिराजसूरिने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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