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जैनसिद्धान्तभास्कर।
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है और उसका जितना अंश सही है; यदि हम पर स्वप्रशंसाका . दोष न लगाया जाय तो हम कहेंगे कि वह सबका सब हमारे जिनसेन
और गुणभद्राचार्य' शर्षिक लेखको देखकर लिखा गया है। उसमें ऐसी एक भी महत्त्वकी बात नहीं है जो हमारे लेखसे अधिक हो । उसकी औंधीसीधी नकलके सिवाय सेठजी और कुछ नहीं कर सके हैं। यदि कुछ अधिक कर सके हैं तो वे ही सब अट्टसट्ट बेसिर पैरकी बातें जिनका कि ऊपर उल्लेख किया जा चुका है। बस, सिर्फ वे ही बातें सेठजीकी निजी चीजें हैं और शायद उन्हीं निजी चीज़ोंके कारण सेठजीको उक्त लेखके लिखनेका अभिमान है । सेठजीकी इतिहासज्ञतामें शायद बट्टा लग जाता यदि वे यह लिख देते कि इस लेखकी सामग्री नैनहितैषकि लेखोंसे ली गई है । अस्तु । पाठक चाहें तो हितैषीकी पुरानी फाइलें निकालकर देख सकते हैं कि हमारा उक्त लेख भास्करके जन्मके लगभग एक वर्ष पहले प्रकाशित हो चुका था और अनुमान कर सकते हैं कि सेठजीका साहस कितना बढ़ा चढ़ा है। - अखिलप्रबन्धं हर्के साहसकर्त्रे नमस्तुभ्यम् ।'
(क्रमशः)
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