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पुरातत्त्वकी खोज करना जैनोंका कर्तव्य है । ३९३
और घेरे किसी समय बहुलतासे मौजूद थे । परन्तु अब भी किसीने जमीनके ऊपरके मौजूद स्तूपोंमेंसे एकको भी जैनस्तूप नहीं प्रकट किया। मथुराका स्तूप जिसका हाल मैंने अपनी पुस्तकमें लिखा है बुरी तरहसे खोदे जानेसे बिलकुल नष्ट हो गया है। मुझे पक्का विश्वास है कि जैनस्तूप अब भी विद्यमान हैं और खोज करने पर उनका पता लगसकता है | और स्थानोंकी अपेक्षा राजपूतानेमें उनके मिलनेक अधिक संभावना है ।
कौशाम्बीवाला मामला ।
मेरे ख़याल में इस बातकी बहुत कुछ संभावना है कि जिला इलाहाबाद के अंतर्गत ' कोशम ' ग्रामके भग्नावशेष प्रायः जैन सिद्ध होंगे - वे कनिंघम के मतानुसार बौद्ध नहीं मालूम होते । यह ग्राम । निस्संदेह जैनोंका कौशाम्बी नगरी रहा होगा और उसमें जिस जगह जैनमंदिर मौजूद है वह स्थान अब भी महावीरके अनुयायियोंका तीर्थक्षेत्र है । मैंने इस बातके पक्के सबूत दिये हैं कि बौद्धों की कौशाम्बी नगरी एक और स्थान पर थी जो बारहटसे दूर नहीं हैं। इस विषय पर मेरे निबंर्धके प्रकाशित होनेके बाद डाक्टर फ्लीटने यह दिखलाया है कि पाणिनिने कौशाम्बी और बन - कौशाम्बीमें भेद किया है । मुझे विश्वास है कि बौद्धोंकी कौशाम्बी नगरी बन ( जंगल ) में बसी हुई वन - कौशाम्बी थी ।
मैं कोशमकी प्राचीन वस्तुओंके अध्ययनकी ओर जैनोंका ध्यान 1. Kausambi and Sravasti, J. R. A. S. July 1898. 2. J. R. A. S., 1907, P. 511.
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