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________________ ३९२ जनहितैषी - जैन हैं गलती से बौद्ध मान ली गई थीं। एक कथा है जिस अनुसार लगभग अठारह सौ वर्ष हुए महाराज कनिष्कने एक बा एक जैन स्तूपको ग़लतीसे बौद्ध स्तूप समझ लिया था और ज वे ऐसी गलती कर बैठते थे, तब इसमें कुछ आश्चर्य नहीं वि आजकलके पुरातत्त्ववेत्ता, जैनइमारतोंके निर्माणका यश कभी कभ बौद्धोंको दे देते हों। मेरा विश्वास है कि सर अलेग्जेंडर कनिंघम यह कभी नहीं जाना कि जैनोंने भी बौद्धोंके समान स्वभावत: स्तूप बनाये थे और अपनी पवित्र इमारतोंके चारों ओर पत्थरवे घेरे लगाये थे। कनिंघम ऐसे घेरोंको हमेशा 'बौद्ध घेरे' कहा करते थे और उन्हें जब कभी किसी टूटे फूटे स्तूपके चिन्ह मिले तब उन्होंने यही समझा कि उस स्थानका संबंध बौद्धोंसे था । यद्यपि बम्बई विद्वान् पंडित भगवानलाल इन्द्रजीको मालूम था कि जैनों ने स्तूप बनाये थे और उन्होंने अपने इस मतको सन् १८६५ ईसवी में ही प्रकाशित कर दिया था, तो भी पुरातत्त्वान्वेषियोंका ध्यान उस समय तक जैनस्तूपोंकी खोजकी तरफ़ न गया जबतक कि तीस वर्ष बाद सन् १८९७ ईसवी में बुहलरने अपना " मैथु राके जैनस्तूपकी एक कथा ' शीर्षक निबंध प्रकाशित न किया । मेरी पुस्तक - जिसका नाम “ मैथुराका जैनस्तूप और अन्य प्राचीन वस्तुयें " है - सन् १९०१ ईसवी में प्रकाशित हुई जिससे सब विद्यार्थियोंको मालूम हो गया कि बौद्धोंके समान जैनोंके भी स्तूप 1. A Segend of the Jain Stupa at Mathura. 2. The Jain stupa and other antiquities of Mathura Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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