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पुरातत्त्वकी खोज करना जैनोंका कर्तव्य है।
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अध्ययनके लिए कुछ पुस्तकें । इन बातोंकी अच्छी तरह खोज करनेके लिए हमको पहले जैन स्मारकों, मूर्तियों, और शिलालेखोंका कुछ ज्ञान प्राप्त करलेना चाहिएं। बहुतसे ऐसे स्मारक ( इमारतें इत्यादि ) अब भी जमीनके नीचे दबे पड़े हैं और यह ज़रूरत है कि कोई होशियार आदमी उनको खोद कर निकाले। जो कोई जैनोंके महत्त्वपूर्ण भग्नावशेषोंकी जाँच करना चाहे उसको प्राचीन चीनी यात्रियों और विशेषकर ह्यांनसाँगकी पुस्तकोंका अध्ययन करना चाहिए । ह्यानसाँगको यात्रियोंका राजा कहनेमें अत्युक्ति न होगी । उसने ईसाकी सातवीं सदीमें यात्रा की थी और बहुतसे जैन स्मारकोंका हाल लिखा, जिनको लोग अब बिलकुल भूल गये हैं । ह्यानसाँगकी यात्रासंबंधी पुस्तकके बिना किसी पुरातत्त्वान्वेषीका काम नहीं चल सकता। हाँ मैं जानता हूँ कि जो जैन विद्वान् उपर्युक्त पुस्तकोंसे काम लेना चाहता है वह यदि चीनी भाषा न जानता हो, तो उसको अँगरेज़ी या:फ्रेंच भाषाका जानकार होना चाहिए। परन्तु मैं ख़याल करता हूँ कि आजकल बहुतसे जैनी अपने धर्मशास्त्रोंके विद्वान् होकर अँगरेजी पर भी इतना अधिकार रखते हैं कि वे इस भाषाकी उन तमाम पुस्तकोंको काममें लासकें जो उनको सफलतापूर्वक अध्ययन करनेमें ज़रूरी हों और एक ऐसे समाजके मनुष्योंको, जो मालामाल है, पुस्तकोंको मूल्यसे न डरना चाहिए।
जैनस्मारकों पर बौद्धस्मारक होनेका भ्रम । कई उदाहरण इस बातके मिले हैं कि वे इमारतें जो असलमें
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