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________________ जैनहितैषी - गुप्त मौर्य श्रीभद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगुल गये, और फि उन्होंने जैनसिद्धांतके अनुसार उपवास करके धीरे धीरे अप प्राण तज दिये, यह कहाँतक ठीक है । निस्संदेह कुछ पाठक यह जानते होंगे कि इस विषय पर मिस्टर लेविस राइस और डाक्टर फ्लीटमें खूब ही वादविवाद हो चुका है। अब समय आगम है कि कोई जैनविद्वान् कदम बढ़ावे और इस विषय पर अपनी दृष्टिसे वादविवाद करे । परन्तु इस कामके लिए एक वास्तविक विद्वानकी आवश्यकता है, जो ज्ञानपूर्वक विवाद करे— ऊँटपटाँग बातोंसे काम नहीं चलेगा । आज कलकी विद्वन्मंडली हरबातके प्रमाण माँगती है और यह चाहती है कि जो बात कही जाय वह ठीक हो और उसके विषय में जो बहस की जाय वह स्पष्ट और न्याययुक्त हो । ३९० दक्षिणका धार्मिक युद्ध । + जिन बड़े बड़े प्रदेशोंमें जैनधर्म किसी समय फैला हुआ था बल्कि बड़े जोर पर था वहाँ उसका विध्वंस किन किन कारणों से हुआ उनका पता लगाना हमारे लिए सर्वथा योग्य है और यह खोज जैनविद्वानोंके लिए बड़ी मनोरंजक होगी । इस विषय से मिलता जुलता एक विषय और है जिसक बहुत थोड़ा अध्ययन किया गया है । वह दक्षिणका धार्मिक युद्ध है और खासकर वह युद्ध है जो चोलवंशीय राजाओंके शैवधर्म और उनके पहलेके राजाओंके जैनधर्ममें हुआ था । Jain Education International • For Personal & Private Use Only J www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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