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जैनहितैषी
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इतिहासके लिये जितनी सामग्रियोंकी जरूरत है हमारे आचार्य प्रवरने प्रायः सभी विषयोंका समावेश इसकी रचनामें किया है । यह भारतवर्षका एक सच्चा सर्वांगपूर्ण इतिहास माना जाय तो इसमें कुछ भी अत्युक्ति न होगी।" इत्यादि । लीजिए, सेठजीने भारतवर्षके सर्वांगपूर्ण सच्चे. इतिहासका पता लगा लिया; अब विद्वानोंको किसी तरहके प्रयत्न करनेकी ज़रूरत नहीं । इस विषयमें लोग नाहक़ सिर खपा रहे हैं । भला, इस बेलगामी प्रशंसाका भी कुछ ठिकाना है ? समझमें नहीं आता कि हम इसे पुराणभक्ति कहें या मूर्खता ! भगवान् आदिनाथके समयका अथवा अधिकसे अधिक महावीर स्वामीतकका, गुरुपरम्परासे चला आता हुआ, विना सन् संवत्का, मुख्यतः धार्मिक जगत्का इतिहास तो हम भी इसे कह सकते हैं, परन्तु भारतका सच्चा सर्वांगपूर्ण इतिहास कहना तो आप ही जैसे साहसियोंका काम है। मालूम नहीं 'सर्वागपूर्ण' का अर्थ आप क्या समझते हैं। हाँ, महापुराणकी वे ' सभी इतिहासकी सामग्रियाँ ' तो प्रकट कर दीजिए और उनसे और नहीं तो महावीरभगवान्का समय ही निश्चित कर दीजिए और उस समयकी राजनीतिक सामाजिक स्थिति क्या थी सो भी बतला दीजिए। अरे भाई ! जिस इतिहासकी डुगडुगी आप भास्करके प्रत्येक पृष्ठमें पीटा करते हैं क्या वही इतिहास आपके भवनके इस आदिपुराणमें मौजद है! ___ आगे आदिपुराण-उत्तरपुराणके मंगलाचरण और प्रशस्तियाँ हिन्दी अनुवादसहित प्रकाशित की गई हैं। मूलमें जो अशुद्धियाँ हैं
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