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जनहितैषी
. हम कोई इतिहासज्ञ नहीं जो एक ऐतिहासिक पत्रकी समालोचना कर सकें । इस विषयमें हमारा ज्ञान बहुत ही परिमित है। — इतिहासका विद्यार्थी' कहलाना भी हम अपने लिए काफ़ीसे ज्यादा सम्मानका कारण समझते हैं; परन्तु भास्कर अभीतक जो कुछ लिखा गया है वह प्रायः इतना साधारण है कि यदि कोई इतिहासका प्रारंभिक विद्यार्थी ही उसे ध्यान पूर्वक पढ़े तो बहुत कुछ कहनेका अवकाश पा सकता है। ___ भास्करके चारों अंकोंकी हम क्रमशः आलोचना करेंगे; पर उसमें हम संभवतः इतिहासका ही विचार करेंगे। उसकी भाषा आदिकी आलोचनाके लिए हमारे पास काफ़ी जगह नहीं । इतना ही कहना यथेष्ट होगा कि उसकी भाषा बहुत ही क्लिष्ट, संस्कृतबहुल, आडम्बरपूर्ण और बनावटी होती है । ऐसा मालूम होती है कि लेखकने उसे अपने विचार प्रकट करनेके लिए नहीं किन्तु अपना पाण्डित्य प्रकट करनेके लिए लिखा है । पाठक उसे समझेंगे या नहीं, इससे लेखकको कोई मतलब नहीं । एक ऐतिहासिक पत्रकी भाषा मामूली पत्रों जैसी रहे यह बात शायद उसके सम्पादककी शानके खिलाफ है।
प्रथमाङ्क। सबसे पहले हम पाठकोंका ध्यान इस अंकके आठवें पृष्ठ पर छपे हुए “ पत्रका मुख्योद्देश्य' शीर्षककी ओर आकर्षित करते हैं। सम्पादक महाशय कहते हैं कि " इसमें ऐतिहासिक विषयकी चर्चा तथा भवनमें सुरक्षित शास्त्रोंके परिचयके सिवाय राजनैतिक और
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