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________________ जैनसिद्धान्तभास्कर । ४६५ I जीका कुछ है तो यही कि उसे लोग आपका ही लिखा हुआ समझते हैं । भास्करका संयुक्त अंक ( द्वितीय तृतीय ) यहीं बम्बई में तैयार कराया गया था । जहाँतक हम जानते हैं उसे श्रीयुत तात्या नेमिनाथ पांगल और पं० हरनाथ द्विवेदीने मिलकर सम्पादत किया था । ये दोनों महाशय लगभग सवासौ रुपया मासिक वेतन लेकर कोई चार पाँच महीने तक काम करते रहे थे : पहले और चौथे अंक में भी सेठजीका खुदका परिश्रम बहुत कम दिखलाई देता है । ऐसी अवस्थामें भी सेठजी जैनसमाजको यह बतलाता चाहते हैं कि मैं स्वयं लेखक और इतिहासज्ञ हूँ और निःसीम परिश्रम करके मास्क - रका सम्पादन करता । पश्यतु साहसम् । यह जैनसमाजका सौभाग्य है कि सेठ पदमराजजी जैसे पुरुष तो थोड़े ही समय पहले ग्रन्थ छपानेके भी कट्टर विरोधी थेइतिहासपर कृपा दृष्टि करने लगे हैं और उन्हें इतना शौक लग गया है कि इस काममें अपनी गिरहके हजारों रुपया बड़ी खुशी से खर्च कर रहे हैं । सेठजींकी इस उदारताकी सभी लोग मुक्तकण्ठ से प्रशंसा करते हैं-है भी यह यथार्थ; परन्तु सेठजी अपनी इस उचित प्रशंसा से सन्तुष्ट न होकर जो बड़ी भारी इतिहासज्ञताका भी समाज पर दावा करने लगे हैं वह अनुचित है और इससे न केवल समाकी ही हानि होगी; किन्तु सेठजी भी इस विषय में अपनी उन्नति न कर सकेंगे । अतएव हम आवश्यक समझते हैं कि भास्करकी यथार्थ समालोचना करके बतला दिया जाय कि उसमें इतिहासत्व कितना है और किस योग्यतासे उसका सम्पादन हुआ है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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