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जैनहितैषी -
जाय तो भी कुछ अनुचित न होगा, ” इत्यादि । सेठजीकी इस अभिप्रायकी लिखावट बतला रही है कि वे जितना कार्य कर रहे हैं उससे दश बीस गुणा यश लूटना चाहते हैं और एक भोले भाले समाज पर अपने महान् इतिहासज्ञ होनेका दावा करते हैं । हमारी समझमें यह सर्वथा अनुचित है और इस तरहके विश्वाससे समाजको हानि पहुँचनेकी संभावना है ।
भास्करमें अभीतक जितने लेख प्रकाशित हुए हैं उनमें एक भी लेख ऐसा महत्त्वका या मौलिक लिखा हुआ नहीं है जिसके विषयमें यह कहा जा सके कि उसकी सामग्री संग्रह करनेमें या छानबीन करने में वर्षों तो क्या महीनों या सप्ताहों भी परिश्रम करना पड़ा हो । ऐस एक भी लेख नहीं है जिसमें किसी अप्रकट बात पर नवीन प्रकार डाला हो या कोई नवीन खोज की हो। कोई लिपि भी ऐसी मह त्वकी नहीं निकली जिसका नया आविष्कार किया गया हो य जिसके पढ़नेमें वर्षों लग गये हों । प्रमाद और भूलें इतन भरी हुई हैं कि पढ़कर आश्चर्य होता है । लेखप्रणाली इतिहासकी मर्यादासे बिलकुल बहिर्भूत है । उसे पढ़कर कोई यह नहीं कह सकता कि उसके लेखकको इतिहासका यत्किञ्चित् भी परिचय है । प्रायःसब ही लेख अत्युक्तियों से भरे हुए हैं । तब यह कैसे मान लिया जाय कि विलम्ब होनेका कारण विषयका गोरव या गहरी छानबीन करना है ।
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इसके सिवाय भास्करमें जो कुछ लिखा गया है, उसका अधिकांश किरायेका है—वैतनिक कर्मचारियोंका लिखा हुआ है। यदि उसमें सेठ
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