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________________ ४६२ जैनहितैषी अनेक स्थलोंमें उल्लेख है। इस घातसे दक्षिणमें जैनधर्मको बड़ धक्का लगा । यह घाल हुआ है इसमें तो कोई सन्देह नहीं, परन्तु हाँ, यह हो सकता है कि इसमें कुछ अत्युक्ति हो। पृष्ठ ४७२। - पल्लवराजा महेन्द्रबर्मन-जो सातवीं शताब्दिके आदिमें हुआ है. मालूम होता है कि शुरूमें जैन था। किसी तामिल महात्मा उसको शैव बना लिया था। इस राजाने शैव होकर दक्षिण अ काटके 'पाटली पुत्तिरिम नामक' स्थानमें एक बड़ेभारी जैनमठव बरबाद किया और उसकी जगह शैवमन्दिर बनवा दिया। . .. . -दयाचन्द्र गोयलीय बी. ए.। जैनसिद्धान्तभास्कर। (समालोचना) भा स्करके अबतक ४ अंक निकले हैं। त्रैमासिव HOME पत्र है । पहला अंक जुलाई-अगस्त-सितम्ब १९१२ का निकला था और चौथा अंक अर्भ SN मार्च सन् १९१५ में प्रकाशित हुआ है लगभग तीन वर्षमें चार अंक निकले । त्रैमासिक हिसाबसे अभीतव इसके ११ अंक निकलने चाहिए थे।श्रीयुत सेठ पदमराजनी रानीवार इसके आनरेरी सम्पादक हैं । सुनते हैं इसका सारा खर्च भी वे अपन - गाँठसे लगाते हैं और अबतक इस काममें लगभग चार हज़ार रुपया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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