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प्राचीन भारतीय इतिहासमें जैनमत ।
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सैकड़ों मन्दिर थे और दिगम्बर जैन विपुल संख्यामें मौजूद थे।
पृष्ठ ४५४,४५५। जब रानसाँग सन् ६४० ईस्वीमें दक्षिणमें गया तब पल्लवदेश ( द्राविड़ ) तथा पाण्ड्यराज्य ( मलकूट ) दोनों जगहोंमें दिगम्बर
जैन प्रजा और जैनमन्दिर बेहद थे । उसके हालसे इस बातका तनिक भी पता नहीं लगता है कि वहाँ किसी प्रकारका धार्मिक वध हुआ। अत एव हमें यह बात माननी चाहिए कि वध जो उसी समयके लगभग अवश्य हुआ है ह्यूनसाँगके वहाँसे जानेके बादमें हुआ है। यह बात पूर्णरूपसे मान्य है कि राजा कून, सुन्दर वा नेदुमारन पाण्ड्य ( Kuna, Sundara, or Nedumaran Pandya) भी जैनकुलमें उत्पन्न हुआ था, उसी धर्ममें जिसने परवरिश पाई थी और जिसका विवाह चोलकी एक राजकुमारीसे हुआ था सातवीं शताब्दिके बीचमें अपनी रानी तथा प्रसिद्ध महात्मा तिरुज्ञानसम्बंदर ( Tirujnana sambandar ) द्वारा शैव हो गया था कि जिस धर्मका चोलराज्यमें बड़ा जोर था । कहते हैं कि सुन्दर राजाने नवीन धर्मके लिए बड़ा ही उत्साह दिखलाया और यहाँ तक किया कि अपने पहले सहधर्मी भाइयों अर्थात् जैनोंको जिन्होंने शैव होनेसे इंकार किया बड़ी ही निर्दयतासे मारा ! ८००० निरपराध जैनोंको इस राजाने सूलीपर चढ़वाकर मरवा डाला ! अरकाटमें ट्विटूरके मन्दिरकी दीवालोंके कितने ही अप्रकाशित तक्षणशिल्पमें इस वधका उल्लेख माना जाता है और उक्त बातकी सत्यतामें उनको पेश किया जाता है। इस वधका अनेक पुस्तकोंमें
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