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जैनहितैषी
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भारतके समस्त जैन उसको धर्मगुरु मानते हैं। इस कथाका जैन हम पृष्ठ १४६ में कह आये हैं चन्द्रगुप्त मौर्यके अन्तिम समय हालसे सम्बन्ध है । कुछ इतिहासज्ञ इसको. मानते हैं, परन्तु कुर्व लोग नहीं मानते । उक्त मौर्य राजाके राज्य छोड़ने और स्वयं प्राण त्यागनेके विषयमें सत्य चाहे जो हो; परन्तु ऐसा कोई काफी सुबूत विद्यमान नहीं है कि जिसके कारण हम इस कथाको रह कर दें कि जैन उत्तरसे दक्षिणमें गये और उन्होंने महावीरके मतको दक्षिणमें बौद्धप्रचारकोंके वहाँ पहुँचनेसे ५० वर्ष पहले फैलाया कहते हैं कि अशोकके पोते सम्प्रतिको सुहस्तिने जैन बनाया था। सम्प्रतिने अनेक प्रचारकोंको जैनधर्मका प्रचार करनेके लिए दक्षि णमें भेजा । दक्षिणमें निस्सन्देह जैनमतने इतनी उन्नति की वि राइस साहबका यह मानना युक्तियुक्त है कि ईस्वी सन्के प्रथम १००० वर्षोंमें मैसूरमें जैनमतका जोर रहा और वह वहाँका मुख्य धर्म रहा है । केवल मैसूरमें ही इस धर्मका प्रचार न था किन्तु न्यूनाधिक यह मत सर्वत्र फैला था । पाण्ड्य देशमें जैनमत सातवीं शताब्दिमें ही क्षीण होने लगा; परन्तु मैसूर और दक्षिणमें यह उसके . सैकड़ों वर्ष बाद तक फैला रहा ।
पृष्ठ ४५३। प्रसिद्ध चीनीयात्री ह्यूनसाँग महाराज हर्षके समय में भारतमें आया था । वह लिखता है कि मलकूट ( यह नाम उसने पाण्ड्यदेशके लिए दिया है) में बौद्धमत तो लगभग मिट गया था, प्राचीन मठ प्रायः नष्ट भ्रष्ट हो गये थे; परन्तु हिन्देवोंके
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