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________________ प्राचीन भारतीय इतिहासमें जैनमत । ४५९ करवाया और उनके गुरुको मरवाया । इसी तरहके और भी अनेक प्रामाणिक उदाहरण दिये जा सकते हैं जिनसे ज्ञात होता है कि कैसी निर्दयतासे जैनोंका वध किया गया है। - पृष्ठ ४२९। -. . . . . . राजा अमोघवर्ष दिगम्बर जैनधर्मका बड़ा प्रेमी था । वृद्धावस्थामें उसने राजपाटको छोड़कर साधुके व्रत धारण कर लिये थे। सन् ८१५ में वह राजा हुआ और सन् ८७७ तक राज्य करता रहा। वह अधिक समय तक बेंगाके पूर्वीय चालुक्य राजाओंसे लड़ता रहा। उसने अपनी राजधानी नासिकसे (?) बदलकर मान्यखेट (निजाम राज्यका वर्तमान मलखेड) में बना ली थी। नवीं शताब्दिके अन्तमें तथा दशवींके प्रारंभमें जिनसेन, गुणभद्र आदि अनेक प्रसिद्ध गुरुओंके कारण जिन पर एकसे अधिक राजाओंकी कृपा रही जैनधर्मने बहुत कुछ उन्नति की। पृष्ठ ४४० । जैनकथाके अनुसार दक्षिणमें जैनमतका प्रचार चन्द्रगुप्त मौर्यके समयमें उन लोगों द्वारा हुआ कि जो उत्तरसे बारह वर्षके घोर दुर्भिक्षके कारण दक्षिणमें चले गये थे । कुछ इतिहासकार इस घटनाको ई० सन्से ३०९ वर्ष पूर्वकी बतलाते हैं। ये लोग मैसूरमें श्रवणबेलगुलमें ठहर गये जहाँ उनके धर्मगुरु भद्रबाहुने जैनमतानुसार तप और परीषह सहकर प्राणोंको त्याग किया । वर्तमानमें श्रवणबेलगुलके प्राचीन जैनमन्दिरका जो धर्माध्यक्ष है वह अपनेको भद्रबाहुका पट्टाधिकारी बतलाता है और दक्षिण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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