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________________ ૫૫૮ जैनाहितैषी B जितने प्राचीन जैनमंदिर अथवा मठ गुफायें वगैरह हैं - जिनके कि आदिका कुछ पता नहीं है - सब एक स्वरसे सम्प्रतिकी ही बनवाई हुई बतलाई जाती हैं । वास्तवमें वह जैन अशोक समझा जाता है । एक ग्रन्थकार उसको सम्पूर्ण भारतका स्वामी बतलाता है. । उसकी राजधानी पाटलीपुत्र ( पटना ) थी; परन्तु अन्य कथा - ओंके अनुसार उसकी राजधानी उज्जैन थी । इन तमाम परस्पर विरुद्ध कथाओंको आपस में मिलाना अथवा इनसे सत्यकी खोज करना असंभव है । बौद्ध और जैनकथाओंके सहमत होनेसे इस बातका पता अवश्य लगता है कि सम्प्रति वास्तवमें कोई व्यक्ति हुआ है । शायद अशोककी मृत्युके बाद तुरन्त ही उसके पोतोंमें राज्य दो भागों में विभक्त हो गया था । दशरथने पूर्वीय देश ले लिया था और सम्प्रतिने पश्चिमीय प्रदेशोंको ले लिया था । परन्तु इस पक्ष के समर्थनमें कोई स्पष्ट साक्षी नहीं है । पृष्ठ २०२ - २०३ । जैनधर्म तथा बौद्धधर्मके ह्रासका एक कारण यह भी है कि अन्यमतावलम्बियोंने बौद्धों तथा जैनोंको बहुत दुःख दिया और उनको मरवाया। ससांक, मिहिरकुलने बौद्धों पर जो जो अन्याय किये उनका हाल ह्यूनसाँग आदि समकालीन लेखकों के लेखोंसे स्पष्ट रूपसे ज्ञात होता है । सातवीं शताब्दिमें इसी प्रकार दक्षिण भारतमें जैनधर्म पर भी आक्रमण हुए और जैनोंका घात किया गया । ई० सन् १९७४-७६ में गुजरातके अजयदेव नामक एक शैव राजाने राज्यको ग्रहण करते ही जैनोंका बड़ी निर्दयतासे वध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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