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प्राचीन भारतीय इतिहास में जैनमत |
पृष्ठ १४६ । जैनकथाओंमें उल्लेख है कि चन्द्रगुप्त मौर्य जैन था । जब
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१२ वर्षका दुष्काल पड़ा तब चन्द्रगुप्त अन्तिमश्रुतकेवली भद्रबाहु के साथ दक्षिणकी ओर चला गया और मैसूरके अन्तर्गत श्रवणबेलगोलामें-जहाँ अबतक उसके नामकी यादगार है - मुनिके तौर पर रहा और अन्तमें वहीं पर उसने उपवासपूर्वक प्राण त्याग दिये । मैंने अपनी पुस्तककी द्वितीयावृत्तिमें इस कथाको रद्द कर दिया था और बिलकुल कल्पित ख़याल किया था, परन्तु इस कथाकी सत्यताके विरुद्धमें जो जो शंकायें हैं उन पर पूर्णरूपसे पुनः विचार करनेसे अब मुझे विश्वास होता है कि यह कथा संभव - तया सच्ची है और चन्द्रगुप्तने वास्तवमें राजपाट छोड़ दिया होगा और वह जैनसाधु हो गया होगा । निस्सन्देह इस प्रकारकी कथायें बहुत कुछ समालोचनाके योग्य हैं और लिखित साक्षीसे ठीक ठीक.. पता लगता नहीं, तथापि मेरा वर्तमानमें यह विश्वास है कि यह कथा सत्य पर निर्धारित है और इसमें सचाई है । राइससाहबने इस कथाकी सत्यताका अनेक स्थलों पर बड़े जोरसे समर्थन किया है । हालमें उन्होंने ' शिलालेखोंसे मैसूर तथा कुर्ग' नामक पुस्तक में इसका जिक्र किया है ।
पृष्ठ १९३ ।
पश्चिम भारतकी जैनकथा अशोकके उत्तराधिकारी सम्प्रतिको जैनधर्मका प्रसिद्ध संरक्षक मानती है और उसकी बड़ी प्रशंसा करती है कि उसने अनार्य देशों में भी जैनमठ बनवाये । प्रायः
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