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भट्टाकलङ्कदेव ।
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परन्तु अकलंककथाका उत्तर भाग-निकलंकके मारे जानेके. बादका कथांश-जिसमें कि बौद्धोंके साथ शास्त्रार्थ होनेका तथा तारादेवीके घटमें स्थापित करने आदिका जिक्र है-कविकल्पित या किसी दूसरी कथाका अनुकरण नहीं मालूम होता । उसके लिए श्रवणबेलगुलका शिलालेख प्रमाण है । उसके 'तारा येन विनिर्जिता घटकुटीगूढावतारा' तथा 'बौद्धोघान्सकलान्विजित्य सुगतः पादेन विस्फोटितः ' आदि पद्योंसे साफ़ मालूम होता है कि अकलंकदेवका बौद्धोंके साथ शास्त्रार्थ हुआ था और उसमें उनकी विजय हुई थी । अर्थात् प्रभावकचरितके बननेसे लगभग १५० वर्ष पहले यह बात प्रसिद्ध थी और इस लिए यह कथाकोशके. मा राजावलीके लेखककी गढ़ी हुई नहीं है।
किन्तु बड़े भारी आश्चर्यकी बात यह है कि प्रभावकचरितवर्णित हंस परमहंसकी कथामें भी तारादेवीके साथ. शास्त्रार्थ करनेकी बात बिलकुल जैसीकी तैसी लिखी हुई है! तब क्या प्रभावकचरितके कर्त्ताने अपनी कथाका उत्तरार्ध कथाकोशकी अकलंककथाका अनुकरण करके गढ़ा है? कमसे कम मुझे तो यह संभव जान पड़ता है । इसके कई कारण हैं। १ एक तो अकलंकदेवकी ताराघटस्फोटकी कथा प्रभावकवरितसे पुरानी है; कमसे कम वि० सं० ११८५ के पहलेकी तो अवश्य है जब कि मल्लिषेणप्रशस्ति लिखी गई है।
२ दूसरे हंस परमहंसकी कथाका यह शास्त्रार्थादिका अंश यों ही परसे नोडा हुआ मालूम पड़ता है-कथासंगति ठीक नहीं जान
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