________________
४५० ,
जैनहितैषी
बहुत प्रसिद्ध है। हरिभद्रके गुरुने उनका क्रोध शमन करनेके लिए जो चार गाथायें लिखकर भेजी थीं कहते हैं कि उन्हींको सूत्र मानकर उन्हींका विस्तारकरके उक्त ग्रन्थ बनाया गया है और उक्त गाथा
में यह भाव मौजूद है कि वे हरिभद्रका क्रोध शमन करानेके लिए लिखी गई हैं। इसके सिवाय हरिभद्रके प्रायः प्रत्येक ग्रन्थके अन्तमें जो विरह ' शब्द आता है वह उनके हंस परमहंस शिष्योंका वियोगसूचक बतलाया जाता है । इस लिए यदि उक्त गाथासूचित क्रोधकषायका और विरहाङ्कका हंस परमहंसके मारे जानेके सिवाय और कोई कारण नहीं है तो कहना होगा कि हंस परमहंसकी कथा अकलंकदेवसे भी पहले की है और उसीको उड़ाकर अकलंक निकलंककी कथाका पूर्व भाग गढ़ लिया है। ___ अकलङ्कदेवकी कथाकी यह बात अवश्य सच मालम पड़ती है कि वे किसी बौद्धविद्यालयमें पढनेके लिए गये थे और जैसा कि विलसन साहब कहते हैं वह पोनतगका विद्यालय होगा। यह एक ऐसी घटना है जो हंस परमहंसके बौद्धविद्यालयमें जाकर पढ़नेकी घटनासे मिलती है और चूँकि हंस परमहंसकी कथाका यह भाग मनोरंजक है इसलिए अकलंकदेवकी कथा लिखनेवालेने अपनी कथाको दिलचस्प बनानेके लिए यदि उसकी नकल कर ली हो और इसके लिए एक नये पात्र निकलंककी भी कल्पना कर ली हो तो कुछ आश्चर्य नहीं। अनेक कथालेखकोंने ऐसा किया है और अपनी कथाओंको मनोरंजक बनानेके लिए इतिहासकी ज़रा भी परवा नहीं की है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org