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________________ भट्टाकलङ्कदेव / 449 है कि ब्रह्मचारी नेमिदत्तने या उनके पहलेके कथाकोशलेखक भट्टारक प्रभाचन्द्रने अपनी कथाका पूर्वाश हंस परमहंसकी श्वेताम्बर कथाकी-संभवतः 'प्रभावकचरित' की कथाकी ही-नकल करके गढ़ लिया है-बौद्धमठमें जाकर पढ़नेकी, बौद्धगुरुके सन्देहकी, प्रतिमा रखकर और वर्तनोंका कर्कश शब्द करके परीक्षा करनेकी, छातेके सहारे कूदकर भागनेकी और मार्गमें एक भाईके मारे जानेकी बात श्वेताम्बर कथासे ज्योंकी त्यों उठाकर रख दी है। नेमिदत्तने इतनी विशेषता अवश्य कर दी है कि जिनप्रतिमाको खड़ी मिटीसे बौद्ध नहीं किन्तु धागा डलवाकर सग्रन्थ श्वेताम्बर प्रतिमा बनवाई है और उसका महात्मा अकलंकके द्वारा अपमान करनाया है, हालाँ कि उसे बौद्धप्रतिमा कल्पित करानेमें भी वहाँ कथाका कोई महत्त्व नष्ट न होता था / हमें यहाँ यह बात स्मरण रखना चाहिए कि दूसरे दिगम्बरजैनकथाकारोंने प्रतिमा पर धागा डालकर उसे श्वेताम्बर बनानेकी बातका उल्लेख नहीं किया है। यह कल्पना खास आराधनाकथाकोशके कर्ताकी जान पड़ती है। हम इस बातको भी असंभव नहीं समझते हैं कि वर्तमान कथाकोश और राजावलीकथे आदिसे भी पहलेके बने हुए किसी ग्रन्थमें अकलंक निकलंककी कथा हो और उसका अनुकरण करके हंस परमहंसकी कथा बनाई गई हो / दिगम्बरके समान श्वेताम्बर लेखक भी ऐसा कर सकते हैं; परन्तु हरिभद्रसूरि अकलंकदेवसे भी पहले हुए हैं-विक्रमसंवत् 575 में उनका स्वर्गवास हुआ था। उनके बनायेहुए पचासों ग्रन्थ मिलते हैं जिनमें 'समराइच्चकहा' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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