________________ 244 जैनहितैषी लिया है। चौदहवीं शताब्दिके पहलेका अभीतक एक भी मन में ऐसा उपलब्ध नहीं है जिसमें निकलंकका उल्लेख हो / श्रवणबेन गुलके ' पार्श्वनाथबस्ती' नामक मन्दिरमें जो मल्लिषेणप्रशस्ति खुर्द हुई है और जो ऐतिहासिक दृष्टिसे बहुत ही महत्त्वकी है शव संवत् 1050 की लिखी हुई है। उसमें चार पंद्य अकलंकदेवने विषयके हैं जिनमें तारादेवीके हराने, हिमशीतलकी सभामें बौद्धोंके जीतने और साहसतुंगराजाके दरबारमें जानेकी बातोंका विशेष उल्लेख है; परन्तु उसमें निकलंकके महत्त्वपूर्ण आत्मोत्सर्गका आ भास भी नहीं। ___ अकलङ्कदेवके समयमें दक्षिण कर्नाटकमें जैनधर्मकी अच्छी प्रति ष्ठा थी। उसे अनेक प्रभावशाली राजाओंका आश्रय प्राप्त था। बौद्धधर्मका भी प्रचार उस समय वहाँ पर था और वह भी एक राजाश्रित धर्म था, परन्तु उस समय वह क्षीणप्रभ हो चुका था / ईस्वीसन् 640 में जब प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्यूनसाँग दक्षिणमें गया था तभी बौद्धधर्मकी प्रभा क्षीण हो रही थी, तब अकलंकदेवके समयमें तो वह और भी हीनज्योति हो गया होगा / अत एव यह माननेको जी नहीं चाहता कि उस समय उसके अनुयायी ऐसा वर्ताव करते होंगे जो अकलंक निकलंकके साथ किया गया बतलाया जाता है। बौद्धधर्मकी उस समयकी तो कमसे कम यह नीति नहीं हो सकती कि बौद्धधर्मका रहस्य जान लेनेके अपराधमें जैनविद्यार्थियोंको मारनेकी चेष्टा की जाय / अतः ऐसा मालूम होता 1. ये पद्य पहले दिये जा चुके हैं / Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org