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________________ 446 जैनहितैषी 'अकलंक निकलंक' और 'हंस परमहंस' ये दोनों नाम स्पष्टतः बतला रहे हैं कि इन दोमेंसे एक कथा अवश्य ही दूसरी कथाका अनुकरण करके लिखी गई है / परन्तु प्रश्न यह है कि किसने किसका अनुकरण किया और दोनों से बनावटी कौन है / इसक उत्तर देना बहुत कठिन है / हंस परमहंसकी कथा श्वेताम्बर सम्प्रदायकी है और लेखक दिगम्बरसम्प्रदायका है, इसलिए आजकलकी पद्धतिके अनुसार केवल यही कह देनेसे निर्णय हो सकता था कि श्वेताम्बर कथा झूठी है / परन्तु यह इतिहासका प्रश्न है, सम्प्रदायका नहीं / और इतिहासान्वेषककी दृष्टिमें यदि श्वेताम्बरसम्प्रदायके लेखक असत्य कल्पना कर सकते हैं तो दिगम्बरसम्प्रदायके कथालेखक भी उसके त्यागी नहीं हो सकते हैं / सच्चे और झूठे लेखक दोनोंमें हो सकते हैं / अतः हमें दोनों ही सम्प्रदायकी कथाओं पर कुछ गंभीरताके साथ विचार करना चाहिए। - नेमिदत्त ब्रह्मचारीने अकलंकदेवको पुरुषोत्तम मंत्रीका पुत्र बतलाया है; और -- राजावलीकथे' आदि ग्रन्थोंमें वे जिनदास ब्राह्मण और जिनमती ब्राह्मणीके पुत्र बतलाये गये हैं, परन्तु स्वयं अकलं. कदेवके रचे हुए राजवर्तिकालंकार नामक प्रसिद्ध ग्रन्थके एक श्लोकसेजो पहले दिया जा चुका है-मालूम होता है कि वे मंत्रीके नहीं किन्तु -- लघुहव्व ' नामक राजाके पुत्र थे / यह संभव है कि उक्त स्वप्रशंसावाचक श्लोक स्वयं अकलंकदेवका बनाया हुआ न हो, उनके किसी शिष्यने लिख दिया हो; परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि वह प्राचीन है। प्राचीनसे प्राचीन पुस्तकोंमें लिखा हुआ है और आराधनाक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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