SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भट्टाकलङ्कदेव। धारण करके पढ़ने लगे / कपलिकामें रहस्य लिखते गये। गुरुको सन्देह हो गया। उसने परीक्षा करनेके लिए सीढ़ियों पर अर्हत्-बिम्बका चित्र बनवाया। हंस परमहंस उस चित्रके कंठमें तीन रेखा बनाकर और उसे बौद्ध प्रतिमा मानकर उस पर पैर रखकर चले गये / गुरुने देख लिया / हंस परमहंस गुरुके पास जा बैठे; परन्तु गुरुके मुखका रंग वदला हुआ देखकर समझ गये कि अब कुशल नहीं है; यह सब षड्यंत्र गुरुका ही किया हुआ था। वे और कोई उपाय न देखकर पेटमें पीड़ा होनेका मिष करके कपलिकाको लेकर भाग खड़े हुए / गुरुने राजासे कहकर उनके पीछे थोडीसी सेना भिजवाई और वह कपलिका मँगवाई / इस सेनाको हंस परमहँसने लड़कर समाप्त कर दी, तब और सेना भेजी गई / इस सेनासे एक तो दृष्टियुद्ध करने लगा और दूसरा कपलिका लेकर भाग गया / सेना हंसका मस्तक काटकर ले गई, परन्तु गुरुको बिना कपलिकाके संतोष न हुआ। तब फिर सेना भेजी गई / परमहंस चित्रकूटके किलेके द्वार पर सोता मिल गया / सेनाने उसका सिर काट लिया और उसे ले जाकर बौद्ध गुरुको सोंप दिया। हरिभद्रको मालूम हुआ / उन्होंने क्रोधित होकर बौद्धोंको कढाईमें होम देनके लिए खींचनेका विचार किया; पर गुरुने गाथायें भेजकर शान्त कर दिया / इत्यादि / " श्वेताम्बर और दिगम्बर कथाओंको पढ़नेसे मालूम होता है कि दोनोंका अधिकांश परस्पर मिलता जुलता हुआ है / दोनोंकी घटनायें ही एक सी नहीं हैं बल्कि नाम भी बिलकुल एकसे हैं / Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy