________________ भट्टाकलङ्कदेव / 443 की गई। जहाँ सन्न विद्यार्थी सोते थे वहाँ कई आदमी पहरे पर रख दिये और आधीरातको ढेरके ढेर वर्तनोंको जीनेसे पटककर चौंका देनेवाला शब्द किया जिसे सुनकर सब विद्यार्थी अपने अपने इष्टदेवका स्मरण करने लगे। उस समय हंस परमहंसने जिनदेवका स्मरण किया और वह पहरे दारोंने सुन लिया / इसके बाद दोनों भाई छत्रोंके सहारे छतसे कूदकर भागे और बौद्ध गुरुकी आज्ञासे 14 4 4 घुड़सवार उनके पकड़नेके लिए दौड़े। कुछ दूरीपर सामना हो गया, सो बड़ा भाई परमहंस जो लड़कर मारा गया और छोटा सूरपाल नामक राजाकी शरणमें चला गया / सबारोंने राजासे कहा कि हमारा अपराधी दे दो; परन्तु उसने देनेसे साफ इंकार कर दिया / बड़ी कठिनाईसे वह इस बात पर राजी हुआ कि हंससे शास्त्रार्थ कर लिया जाय / यदि उसमें यह हार जायगा तो हम इसे तुम्हें दे देवेंगे / शास्त्रार्थ हुआ और वह उसी तरह हुआ जैसा अकलंकदेवका राजा हिमशीतलकी राजधानीमें लिखा हुआ है। "इसमें भी बौद्धमतकी देवी तारा घटमें बैठकर शास्त्रार्थ करती थी। वह अन्तमें जिनशासनदेवीके सुझानेसे पराजित कर दी गई और उसका घड़ा लातोंसे ठुकरा दिया गया / हंसकी जीत तो हो गई; पर उसकी विपत्तिका अन्त न आया / सूरपालके यहाँसे घरको जाते समय सबारोंने फिर पीछा किया / निदान बड़ी कठिनाईसे ये अपने गुरुके पास पहुँचे और गुरुको अपनी विपत्तिका और प्रिय भाईकी मृत्युका हाल सुनाते हुए तीव्र हार्दिक शोकके वेगमें छाती फट जानेसे मर गये / गुरु महाराजको अपने प्रिय शिष्योंके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org