________________ भट्टाकलङ्कदेव ! उसके भाईको पीछा करनेवालोंसे बचनेका अवसर मिल जाय / अकलंकने एक धोबीकी सहायतासे-जिसने उसको अपने कपड़ोंकी गठरीमें छिपा लिया-अपनेको बचा लिया और दीक्षा लेकर सुधापुरके देशीय गणका आचार्यपद शोभित किया। ___" इस समय अनेक मतोंके विद्वान् आचार्य बौद्धोंसे वादविवादमें हार खाकर दुखी हो रहे थे उनमें से वीरशैव सम्प्रदायके आचार्य सुधापुरमें अकलङ्कदेवके पास आये और उनसे उन्होंने सब हालकहा / इस पर अकलङ्कदेवने वहाँ जाने और बौद्धों पर विजय प्राप्त करनेका निश्चय कर लिया / अकलंकने अपनी मयूरपिच्छिको छुपा कर, जिससे वे जैनमती जाने जाते-बौद्धोंको यह विश्वास दिलाने। की योजना की कि वे शैव हैं और इस ढंग पर उनको बादमें जीत कर पीछे उन्हें अपनी मयूरपिच्छि दिखला दी। इस पर बौद्ध लोग बहुत ही क्रुद्धित और उत्तेजित हुए / कांचीके बौद्धोंने जैनियोंका हमेशाके लिए अन्त कर डालनेके अभिप्रायसे अपने राजा हिमशीतलको इस बातके लिए उत्तेजित किया कि अकलङ्कको इस शर्तके साथ उनसे वाद करनेके लिए बुलाया जाय कि जो कोई वादमें हार जाय उसके सम्प्रदायके कुल मनुष्य कोल्हूमें पिलवा दिये जायँ ! बौद्धोंकी तरफसे इस बड़े भारी वादयुद्धकी तैयारियोंका होना किसी कदर असामान्य है; परन्तु इस 1 वीरशैव सम्प्रदाय हैहय ( कलचुरी ) वंशीय राजा विजलके मंत्री 'बसव ' ने विक्रम संवत् 1200 के लगभग स्थापित किया था / यह निश्चित हैं। वसवपुराणमें भी यही लिखा है / इससे अकलंकके समयमें वीरशैव मत नहीं हो सकता / यह कथालेखककी गढन्त है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org