________________ 438 जैनहितैषी ___ राइससाहबने देवचन्द्रकी -- राजावलीकथे' के आधारसे-जिसका उल्लेख पहले किया जा चुका है और दूसरी कई कथाओंके आधारसे अकलंकदेवका वृत्तान्त इसप्रकार लिखा है- . ___ "जिस समय कांचीमें बौद्धोंने जैनधर्मकी प्रगतिको बिलकुल रोक दिया था उस समय जिनदास नामक जैनब्राह्मण (अर्हद्विज) के यहाँ उसकी स्त्री जिनमतीसे, अकलङ्क और निकलङ्क नामके दो पुत्र थे / वहाँ पर उनके सम्प्रदायका कोई पढ़ानेवाला नहीं थाइसलिए इन दोनों बालकोंने गुप्तरीतिसे भगवदास नामके बौद्ध गुरुसे-जिसके मठमें पाँचसौ चेले थे-पढ़ना शुरू किया। एक कथाकार कहता है कि उन्होंने ऐसी असाधारण शीघ्रताके साथ उन्नतिकी कि गुरुको सन्देह हो गया और उसने यह जाननेका निश्चय किया कि वे कौन हैं। अतः एक रात्रिको जब वे सोते थे उस बौद्धगुरुने बुद्धका दाँत उनकी छाती पर रख दिया, इससे वे बालक जिन सिद्ध' कहते हुए एकदम उठ खड़े हुए और इससे गुरुको मालूम हो गया कि वे जैन हैं। दूसरी कथाके आधार पर यह है कि उन बालकोंने एक दिन जब कि गुरु कुछ मिनिटके लिए उनसे अलग हुआ था-एक हस्तलिखित पुस्तकमें ये शब्द जोड़ दिये कि 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' और इस बातकी छानबीन करने पर गुरुको मालूम हो गया कि वे जैन हैं दोनों कथाओंमें चाहे जो सच्ची हो आख़िर नतीजा यह हुआ कि उनके मारे जानेका निश्चय किया गया और वे दोनों भाग निकले / निकलंकने अपना पकड़ा जाना और माराजाना स्वीकार किया ताकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org