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________________ ४३६ जैनहितैषी मुँहासे ' णमोकार मंत्र ' निकल पड़ा और वह बौद्ध गुरुके गुप्तचरने सुन लिया। दोनों भाई पकड़ लिये गये और जब तक दिन न निकल आवे तबतकके लिए एक सतखने महलकी छतपर रख दिये गये । प्राण संकटमें आ पड़े। बड़े भाईके पास एक छतरी थी। सोच विचारकर दोनों उसके सहारेसे कूद पड़े और उसी समय भाग दिये। सबेरे खोज की गई और बहुतसे सवार इनके पीछे दौड़ा दिये गये । निकलंकने दूरसे सवारोंको आते देखा, तब उसकी प्रेरणासे अकलंकने तो अपनेको एक तालाबमें कमलोंके भीतर छुपा लिया; पर निकलंकसे भागनेके सिवाय और कुछ न बन पड़ा । एक धोबी भी डरके मारे उसके साथ भागने लगा । कुछ समयमें सबारोंने इन दोनोंको पकड़ लिया और दोनोंका सिर उतार लियाबेचारा धोबी अकलंकके धोखे मार डाला गया। __ " कलिंगदेशके रत्नसंचयपुरनगरमें हिमशीतल नामका राजा था । उसकी रानी मदनसुन्दरी जिनधर्मानुरागिणी थी। फाल्गुनके अष्टाहिका पर्वमें वह भगवानका रथ निकालना चाहती थी; परन्तु संघश्री नामक बौद्धाचार्यने उसमें रुकावट डाल दी। कहा कि जबतक कोई जैनविद्वान् शास्त्रार्थमें विजय प्राप्त न कर ले तबतक जिनदेवका रथ नहीं निकल सकता । रानीको बड़ी चिन्ता हई । वहाँ आसपासमें कोई जैनविद्वान् न था जो बुलवा लिया जाता । निदान और कोई उपाय न देखकर रानी नमस्कारमंत्रका जाप करने लगी । फल यह हुआ कि पद्मावती देवीने प्रकट होकर एक विद्वानके शीघ्र ही वहाँ आनेका शुभसंवाद सुनाया और दूसरे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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