SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३४ जैनहितैषी - अकलंकप्रायश्चित्त और अकलंकप्रतिष्ठापाठ भी अकलंकदेवले नामसे प्रसिद्ध हैं, परन्तु यह भ्रम है। प्रायश्चित्तको हमने स्वयं देख है। ऐसे निःसार ग्रन्थोंको अकलंकदेवका बतलाना उनका अप मान करना है। प्रतिष्ठापाठ भी उनका नहीं है। आवश्यकता होने पर यह सिद्ध किया जा सकता है। उनके एक स्वरूपसम्बोधन नामक ग्रन्थका उल्लेख डाक्टर सतीशचन्द्र विद्याभूषणने किया है। मालूम नहीं, वह प्राप्य है या नहीं। अकलंकस्वामीके विषयमें जितनी बातें अनबीनसे मालूम हो सकी वे सब लिखी जा चुकीं; अब हम उनके जीवनचरितके विषयमें कुछ विचार करके जो कि कथाग्रन्थोंमें मिलता है-इस लेखको समाप्त करेंगे। ___ कथाओं पर विचार। आराधनाकथाकोशमें अकलंकदेवके विषयमें जो कथा लिखी है उसका सारांश यह है:. “ मान्यखेट ( मलखेड ) नगरमें शुभतुंग नामका एक राजा था.। उसके मंत्रीका नाम पुरुषोत्तम था । पुरुषोत्तमकी स्त्री पद्मावतीके अकलंक और निकलंक नामके दो पुत्र हुए । अष्टान्हिका उत्सवमें एकबार मंत्री अपनी भार्या और पुत्रों सहित रविगुप्त नामक मुनिकी वन्दना करनेके लिए गये। वहाँ पुरुषोत्तम और पद्मावतीने आठ दिनके लिए ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण किया और साथ ही कौतुकवश अपने दोनों पुत्रोंको भी ब्रह्मचर्य दिला दिया। कुछ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy