________________
४२२
जैनहितैषी
ब्राह्मणीका पुत्र और कोई पुरुषोत्तम मंत्री तथा पद्मावती मंत्रिणीका पुत्र बतलाते हैं; परन्तु ये दोनों ही नाम कथाकारोंके गढ़े हुए जान पड़ते हैं वे वास्तवमें राजपुत्र थे । उनके राजवार्तिकालंकार नामक प्रसिद्ध ग्रन्थके प्रथम अध्यायके अन्तमें लिखा है कि वे 'लघुहव्व नामक राजाके पुत्र थे:- जीयाचिरमलङ्कब्रह्मा लघुहव्वनृपतिवरतनयः।।
अनवरतनिखिलविद्वज्जननुतविद्यः प्रशस्तजनहृयः ॥ और इसमें किसी तरहके सन्देहके लिए अवकाश नहीं है । . अकलङ्कदेवका जन्मस्थान कौन है, इसका पता नहीं चलता । आराधनाकथाकोशके कर्त्ताने उनका जन्मस्थान मान्यखेट बतलाया है; परन्तु उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता । क्योंकि उस समयके मान्यखेटके राजाओंकी जो शृङ्खलाबद्ध नामावली मिलती हैं उसमें ‘लघुहब' नामक राजाका नाम नहीं है; संभवतः वे मान्यखेटके आसपासके कोई माण्डलिक राजा होंगे । एक बार वे राजा साहसतुंग या शुभतुंगकी राजधानी मान्यखेटमें आये थे, इसका उल्लेख मिलता है, शायद इसी कारण कथाकोशके कर्त्ताने उनका जन्मस्थान मान्यखेट बतलाया है । कथाकोशकारको यह मालूम न था कि वे राजपुत्र थे-मंत्रीपुत्र समझकर ही उन्होंने ऐसा लिख दिया जान पड़ता है । 'राजावलीकथे' में अकलंकदेवका जन्मस्थान ‘कांची' ( कांजीवरम् ) बतलाया है । संभव है कि यह सही हो।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org